शुक्रवार, सितंबर 10, 2010

आइए, बोली लगाइए और ले जाइए.

क्या आपने कभी लड़कों को बिकते देखा है अपनी शादी के लिए. अगर आपको यह मौका अब तक नहीं मिला तो देर मत करिये. बिहार आ जाइए. आपको यह नज़ारा बखूबी दिख जाएगा और सच मानिए, जब आप लड़कों को कई-एक लाख में बिकते देखेंगे तो आगे से यह कहने से पहले सौ बार सोचेंगे कि बिहार एक गरीब राज्य है. भाई साहब, शादियों के मौसम में इस पूरे राज्य की हर जाति और बिरादरी (खासकर कुछ अगड़ी जातियों भुमिहार, राजपुत और ब्राहमण) में दहेज के नाम पर लेने-देने का जो क्रम चलता है वो सब्जी मंडी में होने वाले मोल-भाव को भी मात दे देता है.

यहां एक बेटी का बाप अपने लिए दामाद और अपनी बेटी के लिए दुल्हा लाता नहीं है बल्कि खरीदता है. अपनी बेटी की शादी करने के लिए किसी दरवाजे पर जाने से पहले अपनी जमां-पूजी और जमीन-जायदाद को जोड़ कर देखता है कि जिस लडके से वह अपनी बेटी ब्याहना चाहता है वो लड़का उसकी बजट में है या नहीं. यहां बजट से मतलब शादी में होने वाला खर्च कतई नहीं है. इस बारे में यहां  एक आम सोच है कि शादी में होने वाला खर्च तो वैसे भी लड़की वालों को उठाना ही चाहिए क्योंकि उनकी बेटी जो ब्याही जा रही है. यह धारणा इतनी आम बन चुकी है कि इसमें किसी को कोई दिक्कत या परेशानी नहीं होती है.

अगर होती भी होगी तो दिखती नहीं है. वैसे तो अब सालों भर शादियां होती हैं लेकिन छठ पर्व के बाद लड़की की बाप अपनी सवारी पर निकलता है, लड़के की तालाश में.  इस खोज में कुछ रिश्तेदार और आस-पड़ोस वाले अहम  रोल अदा करते हैं. ऐसे खोजी लोगों की जमात को अगुवा की उपाधी से नवाजा जाता है. अगुवा की उपाधी जिन लोगों को मिलती है उसमे ज्यादातर ऐसे मर्द होते हैं जो अपनी नौकरी से रिटायर हो चुके होते हैं या फिर वैसी महिलाएं होती हैं जिनके पास घर के काम के बाद ज्यादा से ज्यादा समय वैसे ही बचा रह जाता है. अगुवा बिरादरी शादी करवाने में अहम किरदार निभाता है. वैसे आदमी या औरत सफल अगुवा होते हैं जिसके पास ज्यादा से ज्यादा जानकारी हो और जो मोलभाव करने में भी माहिर हो.

अब अगर किसी बाप को अपनी बेटी ब्याहनी होती है तो सबसे पहले किसी चलती-फिरती डायरेक्टरी (अगुवा) से संपर्क साधता है और अपने मन की बात बताता है. अब यहां से अगुवा का काम शुरु होता है. अगुवा बेटी की बाप का बजट जानने के बाद उसे उसके बजट के मुताबिक लड़का बतला देता है. साथ-साथ यह भी बतला देता है कि कितनी रकम नगद देनी होगी और कितने का सामान देना होगा. कुछ सामान तो आज की डेट में फिक्स हैं जैसे अगर आप 2 लाख से 4 लाख नगद दे रहे हैं तो साथ में एक बाईक ताकि शादी के बाद लड़का-लड़की उस बाईक से आ जा सकें. एक कलर टीवी चाहे इलाके में लाइट हो या न हो. एक पलंग ताकि लड़का-लड़की सो सकें.

पलंग के लिए गद्दा, दरवाजे पर रखने के लिए सोफा,  स्टील के बरतन ताकि कल ल़ड़की को कोई दिक्कत न हो आदि. अगर नगद 4 से 10 के बीच में देनी हो तो टीवी प्लाजमा हो जाएगा, पंलग और सोफा किसी ब्रांडेड कंपनी का होगा और बाईक की जगह चार पहिया ले लेगा. गाड़ी हमेशा लड़्के की पंसंद की होती है. अगर नगद 10 लाख से 20 या 30 लाख हो तो इन सभी चीजों के साथ मुज्जफरपुर या पटना में ज़मीन या बना बनाया फ्लौट अपने आप जुड़ जाता है.

लड़की वालों से कितना पैसा नगद लेना है यह वर पक्ष के बड़े-बुजुर्ग तय करते हैं.  रकम तय करते वक्त हर छोटी से छोटी बात और खर्च का ध्यान रखा जाता है. जैसे- दुलहन के लिए जेवर-जेवरात, कपड़े और सामान लेने में कितना खर्च आएगा? बारात ले जाने में कितना खर्च आएगा? शादी के लिए बैंड कितने में आएगा? कहने का मतलब कि हर छोटे-बड़े खर्च का अनुमान लगाने के बाद यह तय किया जाता है कि कितनी रकम लेनी है.
अगर तय रकम, तय तारीख तक लड़के के पापा के पास पहुंच गया तब तो सब ठीक, सब कुछ मजे में. लेकिन अगर तय नगदी से कुछेक हज़ार या एकाध सामान भी तय समय तक लड़्के वालों के दरवाजे पर नहीं पहुंचा तो फिर कौन समधी, कैसा रिश्ता और किसकी शादी? भाई साहब, इतने के बाद तो सब कुछ बदल जाता है.

मामला यहां तक जा सकता है कि लड़की के बाप को जी भर गालियां भी सुननी पड़ सकती हैं और यह धमकी भी कि अब तो रिश्ता होने का सवाल ही नहीं है. उस वक्त अगर बचा हुआ पैसा या सामान आ गया तो फिर देखिए कैसे वही लड़के का बाप (जो थॊडे समय पहले अपने पजामा से बाहर हुआ जा रहा था और अपने होने वाले समधी को गरिया रहा था) कितने शान और सलजता से अपने समधी के साथ बैठा है.

लड़के के घर वालों की कोशिश होती है कि शादी का पूरा खर्च लडकी के बाप से नक़द वसूल किया जाए या फिर जितनी रकम मिली है खर्च उसी के अंदर ही किया जाए. इस बात का बखूबी ध्यान रखा जाता है कि खुद का एक पैसा न लग पाए.
इन सब के बाद लड़का अपनी शादी में पहनने के लिए शूट सिलवाएगा, मंहगे से मंहगा जूता, बेल्ट, मोजा, रुमाल, और चड्डी – बनियान तक खरीदवाएगा अपने होने वाले ससूर से. अगर इसमे कोई कमी रह गई तो फिर रंग देखिए लड़के का. जो लड़का आज तक रूपा मैक्रोमेन से आगे नहीं गया उसे भी जॉकी की चड्डी चाहिये होगी और रिबलाइन बनियान.

एक लड़की का बाप अपनी बेटी को ब्याहने के लिए हर किसी के नखरे उठाता है बिल्कुल सर झुका कर रखता हैं और मन ही मन इस बात की तैयारी भी करता रहता है कि जब वह अपने इकलौते बेटे की शादी करेगा तो कैसे लड़की वाले से आज का बदला लेगा. इतना सब कुछ होने के बाद भी अगर आपने किसी लड़के को यह कह दिया कि तुम शादी नहीं कर रहे हो बल्कि बिक रहे तो वो आपसे लड़ने को तैयार हो जाएगा.

किसी लड़के के बाप को यह बात सबसे ज्यादा मिर्च लगाती है कि वह अपने बेटे का ब्याह नहीं कर रहा है बल्कि एक सौदा कर रहा है. तो यहां की शादी में सब कुछ होता है – प्रोडक्ट (लड़का), सेल्समैन (लड़का-पार्टी), दलाल (अगुवा) और ख़रीददार (लड़की का बाप). इस पूरे सीन में बस एक चीज़ की इनवॉल्वमेंट नहीं होती और वो है लड़की.

मंगलवार, सितंबर 07, 2010

आपको हुई असुविधा के लिए खेद है.....!


करीब दो घंटे से किसी भी ए.सी. बस के न आने से परेशान एक दिल्लीवासी ने डीटीसी मुख्यालय में फोन घुमा दिया.

करीब दो रिंग के बाद दुसरी तरफ से एक भले मानस की आवाज आई, “डीटीसी हेल्पलाईन में आपका स्वागत है…बताइए आपकी क्या समस्या है?”

फोन करने वाले व्यक्ति को इस नंबर से इतनी सुसज्जित हिन्दी की उम्मीद नहीं थी. सो थोड़ा घबरा गया. फोन को कान से हटा कर देखा फिर थोड़ा मुस्काते हुए बोला, “भाई साहब, क्या कर रहे हैं आपलोग? सुबह का टाईम है. आफिस जाना है. एक भी बस नहीं आई पिछले दो घंटे से. आखिर, चक्कर क्या है?”

व्यक्ति ने अपनी सारी भड़ास निकालते हुए एक हीं सांस में पूरी बात कह डाली. 

“सर, आपको हुई असुविधा के लिए हमे खेद है!” दूसरी तरफ बैठे डीटीसी के अधिकारी ने कहा.
बस स्टॉप पर घंटे से खेड़े व्यक्ति को अब यह सुसज्जित शब्दवाण की तरह लग रहे थे.

अधिकारी की बात बीच में काटते हुए बोला, “खेद-वेद की छोडिये….ये बताइए कि ए.सी. बस कब तक आ रही है?”
 दूसरी तरफ से आवाज आई, “ए.सी. बस अगले कुछ दिनों तक नहीं आएगी. असुविधा के लिए खेद है!” 
अबकी, फोन करने वाले ने कड़ती आवाज में पूछा, “क्यों? क्यों नहीं आएगी भला?”

डिटीसी हेल्पलाईन वाले ने बिल्कुल नम्रता से जवाब दिया, “सर, अगामी गेम के लिए गाड़ियों को अभी से बुक कर लिया गया है. आपको कुछ दिन तक ब्लू लाईन में सवारी करनी होगी. गेम के बाद हम आपको पूरी सेवा दे पाएंगे. तब तक हुई असुविधा के लिए हमे खेद है…...! आपका दिन शुभ हो..!

इससे पहले की फोन करने वाला कुछ बोलता. दुसरी तरफ से टीं…टीं…टीं की आवाज आने लगी.