शनिवार, अप्रैल 03, 2010

मेरे प्यारे प्रधानमंत्री जी.......

प्यारे प्रधानमंत्री जी,

मेरा नाम रौनक है और हम आपकी दिल्ली से बहुत दूर  एक गांव में रहते हैं.  मेरे साथ मेरी मां है जो पिछले कुछ दिनों से बीमार है. बाबा खेती करते हैं. बड़ा भाई जिसकी उम्र 20 साल है,  बाबा के साथ खेत पर काम करता हैं लेकिन दिल्ली जाना चाहता है. उसका कहना है कि खेती करने से हम कभी भी अमीर नहीं हो सकते. अगर वो दिल्ली जाएगा तो ज्यादा पैसे कमा पाएगा. लेकिन मेरे स्कूल के मास्टर जी तो कहते हैं कि सरकार मतलब आप लोग किसानों के लिए बहुत सी योजनाएं बना रहें तो फिर मेरा भाई ऐसा क्यों कह्ता है कि खेती करने से गरीबी नहीं जाएगी. मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा है कि मेरा भाई कमाने के लिए दिल्ली ही क्यों जाना चाहता है.

खैर, मैं तो आपको यह चिठ्ठी इसलिए लिख रहा हूं कि कल स्कूल में मास्टर साहब आपस में बात कर रहे थे. जब मैं उनके लिए बगल की चौक से चाय लेकर पहूंचा तो सुना कि आपने कोई शिक्षा का अधिकार कानून लागू किया है. वही लोग कह रहे थे कि इसके बाद 6 साल से 14 साल तक के हर बच्चे को पढ़ाई-लिखाई करने का अधिकार मिल जाएगा.
यह सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा और मैं इसके लिए आपको बधाई देना चाहता हूं. मैं तो आपको यह खत अंग्रेजी में लिखना चाहता था क्योंकि मैंने आपको टीवी पर फटाफट अंग्रेज़ी बोलते हुए सुना है.  आप बहुत अच्छी अंग्रेज़ी बोलते हैं.

मैं आपकी तरह अंग्रेजी बोलना चाहता हूं लेकिन क्या करूं? हमारे स्कूल में अंग्रेज़ी की पढ़ाई ही नहीं होती क्योंकि कोई टीचर ही नहीं है. मुझे लगता है कि आपको इस कानून को लाने से पहले हमारे स्कूल में अंग्रेज़ी के मास्टर साहब को भेजना चाहिए था. वो ज्यादा जरुरी था.  

मैं बहुत पढना चाहता हूं. बहुत, मतलब बहुत….. लेकिन बाबा कहते हैं कि वो मुझे ज्यादा नहीं पढ़ा सकते क्योंकि उनके पास पैसे नहीं है और न हीं कोई काम  है. अभी मैं आठवी क्लास में हूं और मास्टर साहब कहते हैं कि दसवी के बाद स्कूल की पढ़ाई खत्म हो जाएगी और आगे की पढ़ाई के लिए कालेज जाना होगा. लेकिन मेरे बाबा मुझे कालेज में नहीं पढ़ा पाएंगे. अब अगर स्कूल के बाद वो मुझे पढ़ाई छोड़ने के लिए कहते हैं तो मैं क्या करूंगा?

क्योंकि आपने अभी जो कानून लागू किया है उसमें भी तो चौदह साल के उम्र तक के बच्चों को ही शिक्षा का अधिकार मिला है. उसके बाद के उम्र वालों के लिए तो आपने अपने कानून में कुछ कहा ही नहीं. अब ऐसे में तो मेरे लिए आपका यह कानून किसी काम का नहीं हुआ न. बताइए?

मैंने अपने जिस भाई के बारे में आपको बताया था कि वो दिल्ली जा कर काम करना चाहता है वो भी पढ़ना चाहता था. उसने दसवीं पास भी की और अंक भी अच्छे आए थे लेकिन क्या हुआ… वो आगे नहीं पढ़ पाया. क्योंकि हम गरीब हैं और बाबा केवल खेती करते हैं. पता है आपको, बाबा भी भईया को पढ़ाना चाहते थे लेकिन उनके पास पैसे ही नहीं थे सो खूब  रोये और भाई की पढ़ाई छुड़वा दी!

मुझे लगता है कि मेरे साथ भी यही होगा. मुझे भी अपनी पढ़ाई छोडनी होगी और उस वक़्त भी बाबा, मैं और बीमार मां सब खूब रोएंगे.

प्रधानमंत्री जी, अगर आपने शिक्षा देने के लिए कानून बनाया ही तो उसे 14 की बजाय 20 साल तक के बच्चों के लिए कर देते. आपका तो ज्यादा कुछ नहीं जाता पर आपके इस कानून की बजह से मैं और मेरे जैसे कुछ बच्चे तो कालेज का मुंह देख लेते.

वैसे एक बात और कहना चाहता हूं आपसे, हमारे पास अपना घर नहीं है. बाबा बता रहे थे कि आपने घर बनवाने के लिए भी एक योजना “इंदरा आवास योजना” चला रखी है. इस योजना से घर बनबाने के लिए मेरे बाबा हर रोज ब्लॉक जाते हैं और खाली हाथ लौट आते हैं. अभी तक कोई पैसा नहीं मिला. क्या फायदा ऐसी योजनाओं का?

बाबा ने काम के लिए, रोजगार गांरटी योजना से भी कार्ड बनबाया हुआ है लेकिन जब से कार्ड बनबाया है कोई काम नहीं मिला. कहते हैं पैसे नहीं सरकार के पास? आप के पास तो बहुत पैसा है. ऐसा मेरा दोस्त कहता है.
अगर आपके पास भी पैसों की कमी है तब तो आप भी गरीब हुए. लेकिन आप गरीब कैसे हो सकते है? आप तो केवल खेती नहीं करते हैं. बाबा कहते हैं कि जो कवल खेती पर रहता है उसकी किस्मत ही फूट जाती है और किसानी करने वाला गरीब ही रहता है.

प्रधानमंत्री जी, मैं अभी तो एक बच्चा हूं लेकिन बड़ा हो कर आपके जैसा बनना चाहता हूं. न तो मैं अपने भाई की तरह पढ़ाई लिखाई छोड़ कर दिल्ली में काम करना चाहता हूं और न ही अपने बाबा की तरह केवल किसानी करना चाहता हूं.

मैं तो पढ़ लिख कर अपने कलाम चाचा की तरह बहुत बड़ा वैज्ञानिक बनना चाहता हूं लेकिन मुझे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा.  अब आप ही बताइए कि मैं क्या करूं?

आपका प्यारा
रौनक.

मंगलवार, मार्च 30, 2010

चुप हो जाओ नहीं तो चलती ट्रेन से फेंक दूंगा

 धर्म हमारे यहां एक बेहद संवेदनशील विषय हैं.  धर्म या भगवान के बारे में कुछ भी बोलने से लाखों लोगों की भावनाएं ऐसे भड़कती हैं जैसे अपनी परछाईं को देखकर भेड़ या लाल कपड़े को देखकर सांड़ भड़कता है. मुझे तो लगता है कि इन्सान इस विषय पर ऐसा भड़कता है कि कुछ देर के लिए मरखंड से मरखंड़ साड़ भी शरमा जाए.

क्यों हम अपने धर्म के बारे में आलोचना का एक शब्द भी नहीं सुनना चाहते. क्यों हम राम को न मानने वालों को चलती ट्रेन से फेंक देने की धमकी दे देते हैं? क्यों हम इस बारे में कोई तर्क नहीं करना चाहते और तर्कपूर्ण बातों को भी अपनी थोंथी दलीलों से पोत देना चाहते हैं? 

मेरी समझ से ऐसा इसलिए होता होगा क्योंकि हम नहीं चाह्ते कि कोई हमारी सोच पर प्रहार करे बल्कि यह चाहते हैं कि हम चीजों को जैसे देख रहे हैं, समझ रहे हैं दूसरे भी वैसा ही समझें और देखें. उसी राह पर चलें जिस राह पर हम चल रहे हैं. वैसे तो भगत सिंह को इस देश में बहुत इज्जत दी जाती है लेकिन धर्म और भगवान के बारे में कही गई उनकी बातों को लोग सिरे से नकार देते हैं. 

मेरा ऐसे कुछ कट्टर हिन्दूओं से पाला पर चुका है. आगे कुछ भी कहने से पहले मैं यहां एक बात साफ कर देना चाहता हूं कि जिन लोगों से मैं उस ट्रेन में मिला वो विश्व हिन्दू परिषद या बजरंग दल के कार्यकर्ता नहीं थे बल्कि हमारे आपके जैसे आम लोग थे. जो एक आम ज़िन्दगी जीते हैं. 

बात ज्यादा पुरानी नहीं है. मैं अपने भाई को बंग्लौर पहूंचा कर ट्रेन से पटना लौट रहा था. संघमित्रा एक्सप्रेस में मेरे साथ जो और सहयात्री थे उनमे से ज्यादातर बिहार या उत्तर प्रदेश के थे. वो लोग भी अपने-अपने बेटे-बेटियों को पहुंचा कर लौट रहे थे. ट्रेन में बैठने के थोड़ी देर बाद ही हम सब की जान पहचान हो गई. 

शम  6:30 की  गाड़ी थी सो पहली रात में हल्की-फुल्की बातचीत हुई और फिर हम सब अपने अपने बर्थ पर सो गए.  दूसरे दिन जैसे-जैसे गाड़ी आगे बढ़ रही थी हमारी बातचीत भी परवान चढ़ रही थी.  दिनभर वही सब बातें होती रहीं जो अक्सर ट्रेन और बसों में यात्रा के दौरान होती हैं. जिन्हें आप रास्ता कटाउ बातें भी कह सकते हैं लेकिन जैसे-जैसे दिन ढलने लगा वैसे-वैसे ही बातचीत का माहौल भी बदलने लगा. 
 
हम लोगों के साथ एक मुस्लिम लड़का भी सफर कर रहा था. वह ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं जान पड़ता था. बात कहीं से घूमते फिरते धर्म और खासकर इस्लाम धर्म के बारे में होने लगी थी. करीब करीब चार लोग आरोप लगा रहे थे और अकेले वह लड़का अपनी पूरी क्षमता से अपने धर्म का बचाव कर रहा था. इस सब में एक मोटे ताजे पंडित जी भी थे जो उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखते थे. 

वो कुछ ज्यादा ही आरोप लगा रहे थे. जैसे इस धर्म में तो बच्चे को पैदा होते ही मारकाट सिखाया जाता है. वो अपनी बात को साबित करने के लिए हर फालतू से फालतू तर्क का सहारा ले रहे थे.

जैसे अपनी उपर कही बात को साबित करने के लिए उन्होंन तर्क दिया कि मुस्लमानों में लड़कों का खतना होता है और खतना इसलिए होता है कि  वो खून देख सके और आगे के लिए तैयार हो सके. 

इन सब के बीच मैं चुप था और सोच रहा था कि जल्दी से जल्दी यह विषय बंद हो लेकिन वो तो बोलते ही जा रहे थे. उन्हें पता था कि  मैं पेशे से पत्रकार हूं सो उन्होने इस बारे में राय मागीं. लेकिन मैंने कुछ भी कहने से मना कर दिया. अब उनके साथ-साथ पटना के भी कुछ लोगों ने मुझसे बोलने के लिए कहा. 

मैं बोलना तो चाहता ही था लेकिन माहौल को देखकर चुप था. मैंने उन सभी से कहा कि मैं इस विषय में इसलिए कुछ नहीं बोलना चाहता क्योंकि मैं किसी भी धर्म और किसी भी भगवान नामक सत्ता पर विश्वास नहीं करता. पर बोलना पड़ा. उत्तर प्रदेश वाले पंडित जी ने मुझ पर सवालों की झरी लगा दी. जैसे मेरे पापा का क्या धर्म है? अगर भगवान नहीं है तो यह दुनिया कैसे चलती है? अगर कोई शक्ति नहीं है तो मैं कहां से पैदा हुआ?

ये वही कुछ सवाल थे जो हर एक आस्तिक, एक नास्तिक के सामने रखता है. मैंने भी पूरी कोशिश की जबाव देने की और उन्हें संतुष्ट करने की लेकिन वो नहीं माने. मैंने अपनी बात को भगत सिंह और राहुल संस्कृतायन के सहारे भी कहने की कोशिश की लेकिन कोई फयदा होता नहीं दिखा. हालात इस तरह के हो गए थे कि उस पूरे ड्ब्बे में केवल दो लोग बोल रहे थे. एक पंडित जी और एक मैं.

कुछ लोग बीच-बीच में पंडित जी के साथ हो जाते थे. मैं बिलकुल अकेला पड़ रहा था. सो सोचा कि बात ही बंद कर दूं. लेकिन वो मुझे ऐसा भी नहीं करने दे रहे थे. उनकी बे तर्क की बातें सुन-सुन कर मुझे गुस्सा आ रहा था लेकिन मैं संयम से उनकी हर बात का जवाब देने की कोशिश कर रहा था. उनका चेहरा लाल हो गया था. वो बोलते-बोलते मेरे बिलकुल पास वाली सीट पर आ गए थे. 

उन्होंने कहा कि इतने सारे लोग जो धर्म और भगवान को मानते हैं क्या वो सारे बेवकूफ हैं? मैंने कहा, ऐसा नहीं है लेकिन वो सारे लोग मुझे अंधे लगते हैं जिन्हें केवल अपना धर्म और अपना भगवान दिखता है. क्या है भगवान का अस्तिव? किसने देखा है भगवान को
 
ये अंधापन नहीं है तो और क्या है कि एक पथर की मुर्त्ती जो बिना आपकी मदद से हिल भी नहीं सकता उसमे आपको अपना भगवान दिखता है. आप उस राम को जपते हैं और मर्यादा पुरुष कहते हैं जो अपनी गर्भवती पत्नी को अकेले जंगल में छोड़ देता है. मैंने कहा, अगर आपके राम आज होते तो उनकी पत्नी ने तलाक ले लिया होता और वो जेल में सजा काट रहे होते. 

मेरे इतना कहते ही उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहूंच गया और उन्होंने मुझे चेतावनी देते हुए कहा, “अगर तुमने आगे एक शब्द और बोला तो यहीं ट्रेन से फेंक दूंगा.” 

उनके इस बोल के साथ ही वो बातचीत खत्म हो गई. वो अपने बर्थ पर चले गए और सारे लोग मुझे सांत्वना देने लगे और मैं उस वक्त बिल्कुल शांत था. आसपास खड़े किसी ने भी उनको यह नहीं कहा कि आपने गलत बोला. इसके उलट कुछ लोग मुझे ही समझा रहे थे कि ऐसे नहीं बोलना चाहिए था. 

शायद सही कह रहे थे वो लोग कि मुझे अपने विचार नहीं रखने चाहिए थे. चुप रहना चाहिए था क्योंकि यहां वैसे लोग नहीं चाहिए जो धर्म के पाखंड में नहीं पड़ना चाहते हैं और इस बारे में खुल कर बोलना चाहते हैं.