गुरुवार, अक्तूबर 15, 2009

घर की लड़ाई की वजह से…..

जंगल के रास्ते एक कुत्ता तेजी से दौड़ रहा था.
रास्तेमें खड़े एक किसान ने उससे पूछा- भाई, तुम कहां जा रहे हो?
कुत्ते ने जवाब दिया- मैं जिन्दगी भर के पापों को धोने के लिए गंगा स्नान के लिए जा रहा हूं।
तुम्हें गंगा तक पहुंचने में कितना समय लगेगा?- किसान ने अगला सवाल पूछा।
कुत्ता बोला- महाशय, गंगा तक पहुंचने की दूरी तो कुछ ही समय में तय की जा सकती है लेकिन मुझे कई गुणा ज्यादा समय लगेगा।
किसान ने जिज्ञासा रखी- ऐसा क्यों? क्या तुम चलते-चलते थक गए हो सो कहीं रुक कर आराम करने का इरादा है।

कुत्ते ने जवाब दिया- मुझे आराम करने की कतई जरूरत नहीं है फिर भी वक्त ज्यादा लगेगा. इसकी वजह मेरे मनुहारिए मामा लोग हैं जो गांव-गांव में मिलते हैं.
कुत्ते की यह बात किसान के समझ में न आई. उसने पूछा- मामाओं से आपको क्या तकलीफ है. क्या आपके इतने सारे मामा हैं कि हर गांव में मिलते हैं।

कुत्ते
ने खुलासा करते हुए कहा- मामाओं से मतलब मेरी बिरादरी के कुत्ते हैं. वे जहां भी मिलते हैं, मुझे रोकने की भरसक कोशिश करते हैं. कोई मेरी अगली टांग पकड़ता है, तो कोई पिछली खींचता है. इस खींचतान में और अपनी बिरादरी वालों को समझाने-बुझाने में ही बहुत सारा समय निकल जाता है. बड़ी मुश्किल से अपनी टांग बचाकर मैं फिर यात्रा के लिए आगे बढ़ता हूं. इस तरह मनुहारिए मामाओं को समझाते-बुझाते यह यात्रा दिनों के की जगह महीनों में पूरी होगी.
किसान समझ गया कि घर की लड़ाई की वजह से सफलता देरी से मिलती है।


(सभार: राजस्थान पत्रिका)



1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

अपने ही तो विकास मार्ग में बाधक बनते हैं.

सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

-समीर लाल ’समीर’