गुरुवार, नवंबर 12, 2009

अपना गांव अच्छा नहीं लगा.


अभी एक-दो दिन पहले ही अपने गांव से लौटा हूं, इस बार मेरा गांव प्रवास करीब-करीब बीस दिनों का था सो मेरे पास कुछ ज्यादा टाइम था, अपने उस गांव को देखने-समझने का जहां मैं पैदा हुआ, जवान हुआ. पहले अपना गांव अच्छा लगता था, वहां के लोग और उनकी बातें सुहाती थी. वो जैसे भी थे, अच्छे थे.

वो सारे लोग मुझे अबकी बार अच्छे नहीं लगे, वो इसलिए कि आज भी मेरे गांव का भूमिहार चाहता है कि चमार, डोम, मुसहर उसे नीचे तक झुक कर सलाम ठोके, गाली सुनकर भी उन्हें (भूमिहारों को) मालिक कहे, भूखा रहकर भी उनकी बेगारी करे.

मेरे गांव के चाचा, बाबा और भाई प्रदेश सरकार से दुखी हैं, उनकी नजर में बिहार की वर्तमान सरकार ने इन छोटी जातियों का मनोबल बढ़ा दिया है, ये लोग सरकार को दिन-रात गरियाते है.

मुझे इस बार लगा कि गांव का भूमिहार वर्ग सबसे ज्यादा भ्रष्ट है, कामचोर है, पाखंडी है.
ये तबका गांव में हर साल एक-सावा लाख की लागत से राम भजन करवायेगा, पेटू साधुओं को पालेगा, खिलाएगा लेकिन अपने गांव के किसी बेहद गरीब के लिए एक कम्बल नहीं जुटाएगा. इनलोगों को यह जरूर मालूम है कि रामचरितमानस में कितनी चैपाइयां और कितने दोहे हैं लेकिन इनको इसकी जानकारी नहीं होती कि गांव को मुख्य सड़क से जोड़ने वाली रोड के ढ़लाई का ठेका किसने लिया और काम बीच में ही क्यों रूका हुआ है.

ये बाहर से बेहद धार्मिक टाइप दिखने वाले वैसे प्राणी हैं, जो मांसाहार भी दिन देखकर करते हैं. मैंने ऐसे लोगों को अपने गांव में देखा है जो झोपड़ीनुमा घर में रहने वालों से ब्याज वसूलने के किए हर कदम उठाते हैं लेकिन यज्ञ के नाम पर एक हजार का चंदा मुस्कुराते हुए देते हैं, फिर सारे गांब में घूम-घूमकर इस बात का जिक्र करते हैं कि उन्होंने इतना चंदा दिया. इन लोगों को इस बात से दुख है कि उनके गांव के किनारे झोपड़ी में समय बिताने वाले कैसे पक्के मकान में रह रहे हैं. ये अमीर और खाते-पीते लोग ये चाहते हैं कि इनके गांव के गरीब हमेशा गरीब ही रहे. अनपढ़, अनपढ़ ही रहें ताकि वो इनकी चाकरी करता रहे.

इन सारी वजहों से मुझे इस बार अपने लोग अपने नहीं लगे, अच्छे नहीं लगे. अपना गांव अच्छा नहीं लगा.

7 टिप्‍पणियां:

संदीप ने कहा…

विकास यह जानकर अच्‍छा लगा कि आपने इस नज़रिए से गांव को देखा वरना आजकल 'अहा ग्राम्‍य जीवन' का राग ही सुनाई देता है...

बेनामी ने कहा…

गांव का आपका अनुभव मर्मस्पर्शी लगा... ब्लॉग के सहारे आप से संबध साधने की कोशिश के फल स्वरूप ये प्रतिक्रिया लिख रहा हूं... मैं भी वैशाली जिले के हाजीपुर का रहनेवाला हूं... नाम शंभू है... और मेरा नंबर 9911031065 है... आपसे गुजारिश है कि जरूर संपर्क साधे... क्योंकि मैं भी प्रत्रकारिता के पेशे में ही हूं... लेकिन वैशाली जिले के लोग काफी कम मिलते हैं... आपको ब्लॉग के जरिए जानकर ही काफी अच्छा महसूस हुआ... जरूर संपर्क साधिये... मैं आपके मेल पर मेल भी यहीं गुजारिश करने वाला हूं...

बेनामी ने कहा…

शायद आप भगवान रेलवे स्टेशन के नजदीक के गांव बांदे के रहने वाले हैं... शायद जिसका शुद्ध नाम बान्थु होगा... लेकिन मैं इस गांव से परिचित हूं... कई बार रहसा और भगवानपुर जा चुका हूं... इसलिए आप जरूर संपर्क साधे... मेरा नंबर है 9911031065... आपके कॉल या मिस कॉल का इंतजार रहेगा... आपका जिलावासी शंभू

कुमार आलोक ने कहा…

बचपन और जवानी गांव में गुजारने के बाद इस बार आपको गांव की जमीनी हकीकत का अंदाजा हुआ पचा नही पा रहा हूं।

मनोज कुमार ने कहा…

कमोबेश यही हाल उस प्रदेश के दूसरे गांवों का भी है।

शशि "सागर" ने कहा…

vikaas jee...
padha to bahut pahle thaa aapka ye sansmaran, parantu aaj pratikiryaa likh raha hun.
kamo-besh aise hee haalat ho gaye hain sabhee gaawon ke, parantu aaj bhee shahron se baehtar hain aur abhee bhee wahan sambardhan kee sambhaawnaa jeewit hai...bas hame prayaas karnaa hoga..apne-apne mohallon k liye . jab bhee maukaa miltaa hai.
achha laga aapko padhnaa .

Vikas Kumar ने कहा…

seedhe sapasht tariqe se kahi gayi aapki baat sahi lagi...