रविवार, जनवरी 10, 2010

मीडिया का क्या करें?

पश्चिम बंगाल के एक वयोबृद्ध नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बिमार हैं. बंगाल के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है.

इस तरह के खबरों के बीच एक खबर आती है कि बिमार नेता नहीं रहे. वो स्वर्ग के लिए निकल गए हैं. लेकिन अगले दिन खबर मिलती है कि नेता के मरने की खबर झूठी थी. नेता अभी भी अस्पताल में हैं और मौत से लड़ रहे हैं.

अब कोई बताए कि मीडिया के माध्यम से दी गई उस झूठी खबर के लिए कौन जिम्मेवार है?

क्या कारण है कि किसी के मरने से पहले ही उसके मौत की खबर दे दी जाती है. जब इस तरह की खबर आई तो मुझे अपनी एक दोस्त की बातें याद आने लगी.

कुछ दिन पहले वो एक न्यूज एंजेसी के साथ बतौर पत्रकार काम करती थी. उसने वहां देखा कि जैसे ही कोई नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति बिमार पड़ता है या अस्पताल जाता है तो उन  व्यक्तियों के उपर ऐसे पैकेज तैयार होने लगते हैं जिसे मरने के बाद फौरन चला्या जा सके.

उसने कहा कि ऐसा करते वक्त पत्रकार उस आदमी को मरने से पहले ही अपनी स्क्रिप्ट में मार देते हैं.

लेकिन अब तो ऐसा लगता है कि पत्रकार किसी को केवल अपनी स्क्रिप्ट में ही नहीं मारता बल्कि उस बिमार आदमी को पब्लिकली भी मार देता है.

ये सब देख कर लगता है कि नामी आदमी न बनने में ही भलाई है. कम से कम जिन्दा रहते हुए कोई मारेगा तो नहीं.

आप क्या सोचता हैं?

3 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार झा ने कहा…

इसे ही तो कहते हैं एक्सक्लुसिव खबर का नमूना

अजय कुमार झा

Fauziya Reyaz ने कहा…

kabhi kabhi live rehne ke liye kisi ko deead bhi karna padta hai.....

Unknown ने कहा…

विकास बाबू ये आज की मीडिया है |ग्लोबलाइज़ ,ब्रेकिंग न्यूज़ देने वाली|ये जब आदमी के सिर में बैल का धर लगा सकते है तो कुछ भी संभव है |