प्यारे दोस्तों,
जम के पीजिये. मस्त रहिये. इस गरमी को मात देने में बस मैं ही आपकी मदद कर सकता हूं. लेकिन इसके लिये आपको मेरी बात सुननी पड़ेगी. इसे गुहार कहिये, फ़रियाद कहिये, गिला कहिये... या फिर सलाह कहिये.
अगर आपलोगों ने अपने इस दोस्त को अब तक नहीं पहचाना है तो हम आपको बता दें कि हम वही हैं जिसके बगैर आप ज़िन्दगी रूक सी जाती है, ठहर सी जाती है. हमारे बिना आप सुबह-सुबह फ्रेश नहीं हो सकते. सुबह में ब्रेकफास्ट, दोपहर में लंच और रात में डिनर के टाईम भी आपको मेरी जरुरत होती है और अगर खाने में मिर्च ज्यादा तेज हो गई हो तब तो बगैर हमारे काम ही नहीं चल सकता.
मुझे लगता है कि इतना काफ़ी था. अब आप ये समझ गए होंगे कि मैं कौन हूं? अगर आप में से कुछ लोग अब भी अपना सर खुजला रहे हैं और यह सोच रहे हैं कि मैं कौन हूं तो उअनके लिए बता दूं- मैं पानी, जल या वाटर जो कहिए वही हूं.
हां, हां…वही पानी! जिसके बगैर यहां किसी का काम नहीं चल सकता. हर किसी को मेरी जरुरत है. पेड़-पौधे, कीड़े-मकोरे और आप लोग मतलब इन्सान. यहां तक कि निर्जीव चीज़ों जैसे फ़र्नीचर, गाड़ी और नाजाने क्या-क्या. सब चीज़ों को दुरुस्त रखने के लिये मेरी ज़ुरुरत होती है. प्लीज, आपलोग यह न समझें कि मैं यहां कोई रोब झाड़ रहा हूं या घंमड कर रहा हूं.
मैं तो यह सोच के हैरान हो रहा हूं कि एक तरफ तो आपलोग मुझे जीवनदायनी कहते हैं और दुसरे तरफ मुझे यानि पानी को लेकर बहुत लापरवाही बरतते हैं. ये दोनों चीजें साथ-साथ कैसे हो सकती है? मेरी बात मानिए. मुझे लेकर इस तरह की लापरवाही न करें…..! यह जो बात मैं आपसे कह रहा हूं हो मेरे लिए नहीं है. मेरा तो नेचर ही है बहना.
लेकिन मैं यह नहीं देख सकता कि एक जगह मैं ऐसे ही घंटो बहता रहूं और दूसरी जगह लोग मेरे लिए तरसते रहें, परेशान होते रहें और मेरी तलाश में घंटो सर पर ड्राम लेकर एक जगह से दूसरी जगह भटकते रहें.
हो सकता है कि मेरी बातों को यहां पढकर आप यह सोंचे कि मैं परेशानी को बढ़ाचढ़ा कर पेश कर रहा हूं या फिर आप यह मानें कि इस तरह की दिक्कत दिल्ली या मुम्बई जैसे शहरों में नहीं आएगी. अगर ऐसा सोच रहे हैं तो मैं कहूंगा कि आप गलत हैं और आपको आगे के कुछ महीनों में होने वाली परेशानी का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं है.
साहब, आगे जो कोहराम इन्हीं शहरों में मचने वाली है उसकी खबर आपतक भी पहूंचेगी और अगर एक सुबह आपके बाथरुम या किचन के नलके से मैं नहीं निकलूंगा न….., तब आपको इस बात का अंदाज़ा होगा और तब शायद आप मेरी यहां कही बात को समझेंगे.
सच मानिए, मुझे बहुत खराब लगता है जब आप मुझे बगैर काम के घंटो बहते रहने देते हैं. जब जरुरत हो तब मेरा इस्तेमाल करिए और काम होने के बाद फौरन बंद कर दीजिए. अगर आप मेरा इस्तेमाल ध्यान से करेंगे और मुझे बर्बाद नहीं करेंगे तो मुझे भी खुशी होगी और मेरे दूसरे जरुरतमन्दों को भी मैं आसानी से मिल जाउंगा. अब बात आती हैं कि आप लोग कैसे मुझे बरबाद करते हैं और मेरी इस बरबादी को कैसे रोका जा सकता है.
देखिए, आप में से कुछ लोग सुबह जल्दी-जल्दी में अपना सेव बनाते हैं और जब तक सेविंग करते हैं तब तक मैं नलके से बहता रहता हूं. आप में से कुछ लोग सुबह-सुबह अपने गार्डेन में पानी देते हैं और यह अच्छी बात है क्योंकि मेरी जरुरत तो फुलों को भी है लेकिन यहां भी मुझे फालतु में बहाया जाता है. अगर आप मुझे किसी ड्ब्बे में लेकर पौधों को देंगे तो मेरी बर्बादी को रोका जा सकता है लेकिन अगर आप मेरा इस्तेमाल सीधे पाईप करेंगे तब तो मेरी बरबादी होगी ही न.
अब कुछ लोगों को अपनी गाड़ी हर रोज धोने की आदत होती है और ऐसे लोग सीधे नलके से पाईप लगा कर घंटो अपनी गाड़ी साफ करते हैं. अब आप ही सोचिए कि अगर हर गाड़ी वाला अपनी गाड़ी रोज धोएगा और इसी तरह से घंटो तक धोएगा तो मेरी कितनी बर्बादी होगी. हो यह भी सकता है कि गाड़ी को रोज मुझसे न साफ किया जाए. बल्कि दस या पन्द्रह दिनों मे एक बार इस काम के लिए मेरा इस्तेमाल किया जाए.
वहीं कुछ घरों में काम के समय या बर्तन धोने के समय भी मेरा इस्तेमाल इस तरह से होता है कि मैं रो देता हूं. एक और जरुरी बात जो मैं चलते-चलते कहना चाहता हूं कि बारिश के समय भे मैं वैसे ही बरबाद होता हूं.
सच मानिए, इस समय मुझे अपनी बरबादी और उन लोगों की किस्मत पर बहुत रोन आता है जो मेरी तलाश में घंटो इधर से उधर भटकते रहते हैं. तब किसी को इस बात के फिक्र नहीं होती कि मुझे स्टोर किया जाए और जरुरत के समय इस्तेमाल किया जाए. लेकिन कुछ लोगों ने इस तरफ काम किया है और उन लोगों से मुझे खुशी है.
आप सब की और बहुत सी ऐसी आदतें है जिसकी वजह से मैं बरबाद होता हूं लेकिन मैं इस लेटर में सारी बातें तो नहीं कह पाउंगा और ऐसा करना मुझे अच्छा भी नहीं लगेगा.
मैं तो बस इतना कहना चाहता हूं कि मेरे इस्तेमाल में थोड़ी सी सावधानी बरतिए ताकि हर किसी की प्यास बुझ सके और जरुरत पूरी हो सके.
वैसे तो आप इंसान हैं, आपको समझाने और बताने की ज़ुरुरत क्या है. विवेक आपके आजू-बाजू ना घूमता तो कैसे छत वाली टंकी में स्टोर करके नलके से मुझे निकालते और फ़िल्टर में डालकर मुझे प्योर करते. मेरा ख़त उम्मीद है आपके ज़ेहन में रहेगा.
ठीक है तो फिर मैं चलता हूं आपके नलके में ताकि जब आप नलका घुमाएं तो मैं बाहर आ सकूं और आपकी जरुरत को पूरा कर सकूं.
आपका दोस्त,
आपका दोस्त,
पानी
4 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर
अति सुन्दर
क्या बात
bahut acchhe....
par kaash koi is marm ko samajh paataa!!
aapne apni abhivyakti me ek naye tarike ka ijaad kiyahai achha laga padhte hue
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