करीब दो घंटे से किसी भी ए.सी. बस के न आने से परेशान एक दिल्लीवासी ने डीटीसी मुख्यालय में फोन घुमा दिया.
करीब दो रिंग के बाद दुसरी तरफ से एक भले मानस की आवाज आई, “डीटीसी हेल्पलाईन में आपका स्वागत है…बताइए आपकी क्या समस्या है?”
फोन करने वाले व्यक्ति को इस नंबर से इतनी सुसज्जित हिन्दी की उम्मीद नहीं थी. सो थोड़ा घबरा गया. फोन को कान से हटा कर देखा फिर थोड़ा मुस्काते हुए बोला, “भाई साहब, क्या कर रहे हैं आपलोग? सुबह का टाईम है. आफिस जाना है. एक भी बस नहीं आई पिछले दो घंटे से. आखिर, चक्कर क्या है?”
व्यक्ति ने अपनी सारी भड़ास निकालते हुए एक हीं सांस में पूरी बात कह डाली.
“सर, आपको हुई असुविधा के लिए हमे खेद है!” दूसरी तरफ बैठे डीटीसी के अधिकारी ने कहा.
बस स्टॉप पर घंटे से खेड़े व्यक्ति को अब यह सुसज्जित शब्दवाण की तरह लग रहे थे.
अधिकारी की बात बीच में काटते हुए बोला, “खेद-वेद की छोडिये….ये बताइए कि ए.सी. बस कब तक आ रही है?”
दूसरी तरफ से आवाज आई, “ए.सी. बस अगले कुछ दिनों तक नहीं आएगी. असुविधा के लिए खेद है!”
अबकी, फोन करने वाले ने कड़ती आवाज में पूछा, “क्यों? क्यों नहीं आएगी भला?”
डिटीसी हेल्पलाईन वाले ने बिल्कुल नम्रता से जवाब दिया, “सर, अगामी गेम के लिए गाड़ियों को अभी से बुक कर लिया गया है. आपको कुछ दिन तक ब्लू लाईन में सवारी करनी होगी. गेम के बाद हम आपको पूरी सेवा दे पाएंगे. तब तक हुई असुविधा के लिए हमे खेद है…...! आपका दिन शुभ हो..!
इससे पहले की फोन करने वाला कुछ बोलता. दुसरी तरफ से टीं…टीं…टीं की आवाज आने लगी.
4 टिप्पणियां:
यह तो मात्र एक असुविधा का जिक्र शुरु हुआ है. :)
इसे पढ़िये:
http://sadhviritu.blogspot.com/2010/09/blog-post_06.html
सारगर्भित पोस्ट!! उम्दा व्यंग्य!! लिखते रहिए
व्यवस्था चरमरा गई है।
अभि तो और झेलना है।
हरीश गुप्त की लघुकथा इज़्ज़त, “मनोज” पर, ... पढिए...ना!
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