पटना का गांधी मैदान ऐतिहासिक है. मैदान में लाठी टेके खड़े महात्मा गांधी की मूर्ति की
ऐतिहासिकता भी उतनी ही है. बड़े-बड़े आंदोलनों का संकल्प उस मूर्ति को साक्ष्य बनाकर लिया जा चुका है. अब भी हर दो-तीन दिनों में आंदोलन- विरोध-प्रदर्शन के सूत्रपात का केंद्र है वह. लगभग हर रोज पटना के जेपी गोलंबर पर लगी लोकनायक जयप्रकाश नारायण की आदमकद मूर्ति के सामने धरना पर बैठा कोई न कोई छोटा-बड़ा समूह दिखता है.
गांधी मैदान के पास कारगील चौक पर बने शहीद स्मारक भी भाषणबाजी का नया केंद्र बन रहा है और शहर का एक मशहूर जंक्शन प्वाइंट है, जहां से हर रोज हजारों लोग, अलग-अलग इलाके में जाने के लिए रिक्शा,टैंपो या बस पकड़ते हैं.
आर-ब्लॉक चैराहा तो अरसे से मशहूर है. वहां विरोधियों को रोका जाता है. वहीं से सियासत की गली शुरू होती है. वहां पर भी घोड़े पे सवार, एक हाथ में तलवार लिए वीर कुंवर सिंह की मूर्ति शान से खड़ी है.
ऐसे ही और भी कई चैक-चैराहे हैं पटना में जिनकी पहचान उसकी नाम के साथ वहां लगी प्रतिमाओं से भी है. रोजाना इन मूर्तियों को देखते हैं लोग. उससे जगह की पहचान करते हैं लेकिन शायद बहुत कम लोग मिलेंगे जो यह बता सकें कि राजधानी में हर ओर लगे इन मूर्तियों का सर्जक कौन है?
सर्जक को नहीं जानने की एक बड़ी वजह तो यह है कि शिल्पकार नेपथ्य में ही रहते हैं और दूसरी वजह है जयनारायण सिंह का शर्मिला स्वभाव, जिसकी वजह से वे खुद की ब्रांडिंग नहीं करते.
उम्र के 75वें साल में पहुंचे जयनारायण सिंह ही हैं, जिन्होंने बिहार की राजधानी पटना की पहचान बनी इन मूर्तियों को गढ़ा है. सिर्फ उपरोक्त प्रतिमाएं ही नहीं, सचिवालय प्रांगण में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बीपी मंडल की मूर्ति, मुख्यमंत्री आवास, एक अन्ने मार्ग के पास स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक जगजीवन राम की मूर्ति, कदमकुआं चैराहे पर खड़ी राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की मूर्ति को आकार देने वाले भी जयनारायण सिंह हीं हैं
किसान परिवार से तालुक रखने वाले और 1959 में पटना के आर्ट कॉलेज से मूर्तिकला की पढ़ाई पूरी करने वाले जयनारायण सिंह पिछले 40 वर्षों से देश के जानेमाने कवि-साहित्यकार, स्वतंत्रता सेनानी और दूसरे जानेमाने लोगों की मूर्तियों को आकार दे रहे हैं. खुद पर बात करने से वे आज भी बचते हैं.
पटना के राजवंशी नगर में स्थित एक मैदाननुमा जगह पे (इसी जगह से वो लगातार मूर्तियां बनाए जा रहे हैं.) हुई मुलाकात के दौरान जब हमने इस कलाकार से पूछा कि क्या उनके काम को नोटिस लिया गया? क्या उन्हें राज्य से सम्मान न मिलना अखरता है तो जवाब में जयनारायण कहते हैं, “(मुस्कुराते हुए) मूर्ति बनाए बिना मैं नहीं रह सकता. यह काम मैं अपने लिए करता हूं. हां, जब शहर में निकलता हूं और खूद से बनाई गई मूर्तियों को चैक-चैराहों पे खड़ा देखता हूं तो मन को शुकून मिलता है. कोई भी सम्मान, मुझे इतनी खुशी नहीं दे सकता.”
जयनारायण सिंह से घंटों बात होती हैं लेकिन वे दूसरे किसी संस्कृतिकर्मी या कलाकार की तरह उचित सम्मान न मिलने का रोना एक बार भी नहीं रोते. ऐसे सवालांे को हंसते हुए, आसानी से टाल जाते हैं. यह साफ लगता है िकवे एक साधक हैं, कला के ऐसे साधक कि इस साधना में बढ़ती उम्र, कहीं बाधक नहीं बन रही. हालांकि उनके घुटने में दर्द रहता है लेकिन वे जब काम में तल्लीन होते हैं तो दर्द की परवाह नहीं करते. कांपती हुई हाथों से ही मूर्तियों को गढ़ते रहते हैं. जयनारायण सिंह कहते हैं, “ काम कर रहा होता हूं तो मेरा सारा ध्यान काम पे केंद्रित हो जाता है. फिर कुछ और दिखाई ही नहीं देता. कांपने या दर्द का अहसास नहीं होता. ”
अगर सारा मामला ध्यान केंद्रित होने का नहीं होता तो कोई कारण नहीं था कि एक किसान परिवार का लड़का, मैट्रिक की पढाई पूरी करने के बाद साल 1954 में सीधे-सीधे पटना आर्ट कॉलेज में पहूंच जाता, मूर्तिकला सिखने के लिए. जयनारायण सिंह बताते हैं कि पिताजी की इच्छा थी कि मैं भी पटना के बीएन काॅलेज में दाखिला ले लूं और किसी तरह दारोगा बन जाउं. लेकिन जयनारायण सिंह के मन में कला का जुनून था. इसकी कीमत भी उन्हें घर में चुकानी पड़ी. पिता ने विरोध किया. घर से निकाल दिया गया. लेकिन जयनारायण सिंह टूटे-बिखरे नहीं. उन्होने मन मुताबिक आर्ट कॉलेज में दाखिला लिया. अब बुजूर्ग हो चुके जयनारायण कहते हैं, “ मेरे पिताजी का कोई दोष नहीं था. यही चलन था, उस वक्त का. उस समय कॉलेज में चार रुपय फीस लगती थी जो मेरे पास नहीं था. फिर मैंने बाजार में कुछ-कुछ काम किया और इसी से फीस का जुगाड़ होता रहा.”
पढ़ाई पूरी करने के बाद से इस कलाकार ने पिछले 40 वर्षों में करीब दो सौ आदमकद मूर्तियां बनाईं जो पटना के अलावा राज्य के दूसरे हिस्सों के चैक-चैराहों पर खड़ी हैं.
इस कलाकार को न तो पूर्ववर्ति सरकार से कोई गिला-शिकवा है और न हीं आज की नीतीश सरकार से जिसने यह फैसला लिया है कि गांधी मैदान में इनके द्वारा बनाई गई गांधी की मूर्ति को बदल के दूसरी मूर्ति लगाई जाएगी. लेकिन जब बात आती है पटना कॉलेज के वर्तमान हालत की तो अब तक शांत और मुस्कुराते हुए बात करने वाले इस मूर्तिकार का मिजाज बदल जाता है और आवाज में तल्खी आ जाती हैं. कहते हैं, “बहुत बुरी हालत है. बच्चे, बगैर शिक्षकों के क्या सीख पाएंगे.” फिलहाल जयनारायण सिंह प्रसिद्ध हिन्दी उपन्यासकार फणीश्वर नाथ रेणु की 17 फुट ऊंची मूर्ति को आकार देने में लगे हुए हैं जिसे इसी साल मार्च में कंकड़बाग में स्थापित किया जाना है. इन सब के अलावे सिंह साहब एक 108 फुट ऊंची महात्मा बुद्ध की मुर्ति बनाना चाह रहे है जिसे वो अपने गांव निजामपुर की तरफ लगवाना चाहते हैं. इसे हम जयनारायण सिंह का ड्रीम प्रोजेक्ट भी मान सकते हैं क्योंकि वो इस मूर्ति को बनाने से पहले रुकना नहीं चाहते.
2 टिप्पणियां:
कला-साधना की प्रतिमूर्ति.
पटना में आज ये कहाँ रहते है या कहाँ मिलेंगे अगर संभव हो तो इनके बारे में जरुर बताये. मेरा मोबाइल 8581031087
email - jai26bhaskar@gmail.com
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