बिहार में हर साल एक बिमारी तय मौसम में. तय समय पे आती है. और बगैर किसी शोर-शराबे के हर साल कुछ बच्चों को मौत की नींद सुला जाती है. यह भी कमाल की बात है कि इस बिमारी के शिकार केवल गरीब के बच्चे ही होते हैं. जैसे प्रकृति कह रही हो-क्या करोगे तुम जी के. चलो. इस दुनियां मे गरीबो के लिए ज़िन्दगी जीना सबसे कठीन है.
जैसा कि पिछले पंद्रह सालों से होता आया है. इस इलाके में. जून के महीने के साथ. गर्मी बढ़ने के साथ. बिमारी ने बच्चों को निगलना शुरू किया. और आज एक महीने बाद, बताया जा रहा है कि 233 गरीब बच्चे मौत ही नींद सो चुके हैं. बताइए…किस समाज में रह रहे हैं, हम. एक महीने के अंदर. 233 मौतें. एक बिमारी से. वैसी बिमारी जो पिछले पंद्रह साल से आ रही है. हर साल. फिर भी कोई हो-हल्ला नहीं. हर तरफ शांति. चुप्पी. जैसे इस बिमारी से केवल गरीब के बच्चे ही नहीं मर रहे. पूरा का पूरा बिहारी समाज मर गया हो. और समूचे बिहार में मरघट सी शांति पसरी हो. कहीं कोई आवाज नहीं.
एक साल तक पटने में रहा हूं. छोटे-छोटे मुद्दों को लेकर लोग करगील चौक पे धरने पे बैठ जाते हैं. डाक-बंगला चौराहा जाम होता रहा है. लेकिन 233 बच्चों की मौत पे चुप्पी?
शायद ये चुप्पी इसलिए कि जो मर रहे हैं वो गरीब-गुरबे हैं. जिन्हें आज भी केवल वोट-बैंक समझा जाता है. जिन्दा लोग नहीं!
2011 की जुलाई महीने में इस बिमारी को पास से देखने-समझने का मौका मिला. दो दिन मुजफ्फरपुर और दो दिन गया में रह कर. एक दोपहर को मुजफ्फरपुर के केजरीवाल अस्पताल में पहूंचा था. कदम सीधे-सीधे दूसरे तल्ले के उस बड़े से कमरे की तरफ बढ़ चले थे जिसे “इंसेफलाइट- वार्ड” का नाम दिया गया था.
एक हॉलनुमा कमरा. करीब-करीब पच्चीस बेड. हर बेड पे एक बच्चा लेटा हुआ. बच्चे की मुरथारी में उसकी मां-दादी या नानी बैठी हुई. बच्चे…कोई पांच बरिष का तो कोई सात तो कोई दो या तीन बरिष का. सबके-सब बेहोश. पेट फुला हुआ. आंखे बंद. नाक और मुंह में एक पाईप ठुंसी हुई. कुछ आखें खुली तो थी लेकिन डॉक्टर ने बताया कि केवल खुलीं हैं. पिछले कई दिनों से. कुछ सेंस नहीं है इनके पास….! बिमार बच्चों का सेंसलेस होना तो समझ आता है. लेकिन यह समझ नहीं आता कि पिछ्ले सोलह साल से सरकारें और पब्लिक क्यों सेंसलेस हुई पड़ी है?
उन्हीं दिनों, बिहार के दो इलाकों के अस्पतालों से ली गईं कुछ तस्वीरें नीचे पोस्ट की गईं हैं. कोई कैप्शन नहीं. कोई नाम नहीं. केवल सादी तस्वीरें-
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1 टिप्पणी:
भयावह.
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