सोमवार, फ़रवरी 01, 2010

हनुमान हो लिए राम विरोधी

राजनीति खेल का एक ऐसा मैदान है जहां हर कोई हमेशा अपना-अपना दाव चलता रहता है. यहां कुछ भी पहले से तय नहीं होता. इस मैदान का कोई  भी  रेफरी या अंपायर दावे से कुछ भी नहीं कह सकता. 

इधर हमेशा कोई न कोई खेल चलता रहता है. मजे की बात तो यह है कि इस मैदान के खिलाड़ी  हमेशा डटे रहते है और वह भी पूरे मनोयोग से. यहां हर कोई किसी न किसी पर अपना दाव चलाने के  लिए तैयार बठा होता है. 

अब देखिए, अभी कुछ दिन पहले तक मुलायम सिंह और अमर सिंह एक दूजे के लिए बने दिखते थे. अमर के लिए मुलायम राम थे और मुलायम के लिए अमर सिंह छोटे भाई थे. जब भी मैंने अमर सिंह का कोई इंटर्व्यू टीवी पे देखा तो उसमे अमर सिंह को मुलायम के बारे में कसीदे पढ़ते हुए पाया. अपने को कभी मुलायम का भक्त तो कभी राम भक्त हनुमान कहते हुए पाया. 

लेकिन पिछले दिनों एक ही झटके में आज के हनुमान अपने राम से अलग हो गए. सारी यारी-दोस्ती और भक्ति चुल्हे में डाल दिया और तो और हनुमान अपने राम के सबसे बड़े दुश्मन के बारे में कसीदे पढ़ने लगे.

कहीं ये कसीदे इसलिए तो नही पढ़े जा रहे कि राजनीति का यह हनुमान अपने राम के कट्टर विरोधी की गोद में बैठने की तैयारी कर रहा हो. लेकिन अभी कुछ भी कहना अपने आप को झूठा बनाने की तैयारी करना है. सो मैं यह नही कहना चाहूंगा कि अमर मुलायम से अलग होकर माया की जाल में फंसने की तैयारी कर रहे है. फिर वही बात सामने आती है कि यह राजनीति है यहां कभी भी कुछ भी संभव है. 

यह भी हो सकता है कि अमर सिंह  ने बहन जी की तारीफ में जो कुछ भी कहा है वो केवल मुलायम एंड पार्टी को चौंकाने के लिए था, या फिर वो करना कुछ और चाह रहे हों लेकिन मीडिया और मुलायम के नीतिकारों का ध्यान बांटने के लिए ऐसा कहा हो.

खैर, एक बात तो जरुर है कि वगैर आग के लपटें नहीं उठती मतलब अमर सिंह के घर कुछ न कुछ तो पक रहा है.

एक बात तो तय है कि अमर सिंह के इस ब्यान के बाद मुलायम सिंह अपनी साइकिल- सवारी की कला को और बेहतर करने के बारे में सोच रहे होंगे. सोचना भी चाहिए क्योंकि एक बहुत पुरानी कहावत है "घर का भेधी लंका ढ़ाय".

4 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

अपकी पोस्त का शीर्शक बहुत पसंद आया पोस्त तो आनी ही थी राजनीति ??? सब अभिनेता हैं हैं यहाँ नेता होते तो देश का कल्याण होता इन पर कोई भरोसा नही कौन सचा है कौन झूठा आभार्

बेनामी ने कहा…

Kyaa karen vikaas baabu... Ab Raam jaise kapatee se jo apnee beevee kaa bhi naa huaa... use hanumaan to bechaaraa chhodegaa hee... waise hanumaan bhee kab tak brahamchaaree banaa rahe... maayaa kee chhayaa mil jaaye... to kya kahana hai..

Unknown ने कहा…

विकास बाबु आपके आलेख का शीर्षक ही आपके आलेख कों चरितार्थ करते हुए दिख रहा है | राजनीति के इस राम - हनुमान की जोड़ी , रामचरितमानस के रामयाण के राम और हनुमान की जोड़ी की तरह नहीं चल पायी |आपके आलेख में व्यंग्यात्मक शब्दों की पटुता कों देखकर मान आह्लादित हुआ |आपके आलेख के पढने का इंतज़ार और उसे पढ़कर मिली खुशी कों मई शब्दों के दायरे में नहीं बाँधना चाहता हूँ |
आपका अनुज
गौतम

Fauziya Reyaz ने कहा…

aap baat to sahi keh rahe hain, par isse kisi ko koi fark nahi padta ki hum log klya sochte hain....hamare neta behis hain yaani unhe kuch mehsoos nahi hota...