मंगलवार, फ़रवरी 08, 2011

किसान हूं, सरकार नहीं.

मेरे खेत को उजाड़ दो,
घर को भी उखाड़ दो,
फिर अपने विकास का झंडा वहां गाड़ लो,

मैं कुछ नहीं कहूंगा,
कुछ नहीं करूंगा,
क्योंकि मुझे ज़मीन चीरना आता है,
सीना फाड़ना नहीं आता.

3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

उम्दा अभिव्यक्ति

Gautam sachdev ने कहा…

दर्द की एक अनोखी अभिव्यक्ति और वो भी नायाब शब्दों में

Fauziya Reyaz ने कहा…

behad touching...yahan bahut khoob nahi keh sakti...