शुक्रवार, अक्तूबर 14, 2011

सिविल सोसाईटी सदस्य: ये क्या हो रहा है?


टीम अन्ना के एक प्रमुख सदस्य हैं, प्रशांत भूषण. इन्हें देश के एक वरिष्ठ वकील के तौर पे भी जाना जाता है. कुछेक दिन पहले प्रशांत ने कश्मीर समस्या के उपर अपनी राय दी. प्रशांत ने जो कहा उसे यहां दुहराने की जरुरत नही है लेकिन उस प्रतिक्रिया के बाद प्रशांत भूषण के साथ जो व्यवहार किया गया उसकी निंदा होनी चाहिए. आरोपियों को पकड़ा जाना चाहिए और उन्हें समझाया जाना चाहिए कि इस देश में हर किसी को बोलने का अधिकार है, अपनी बात रखने का अधिकार है लेकिन किसी के साथ मार-पिटाई करने की छुट किसी को भी नही है.

खैर, इस धटना के बाद टीम अन्ना के दूसरे सदस्य जिस तरह से प्रशांत भूषण से किनारा कर रहे हैं. अन्ना हजारे जो बयान दे रहे हैं वो उस दुखद घटना से भी ज्यादा पीड़ादायक है. और इस तरह के बयान से यह भी साफ हो रहा  है कि टीम अन्ना के लिए इस देश में केवल एक समस्या है, भ्रष्टाचार. जबकि ऐसा कतई नहीं है. भ्रष्टाचार इस देश के लिए एक बड़ी समस्या है. इसमें कोई शक नही. कोई अपत्ति नही.

लेकिन इसके अलावा भी बहुत बड़ी-बड़ी सममस्याएं हैं इस देश में. जैसे- कश्मीर समस्या, नक्सल समस्या, गरीब-मजदूरों की समस्या और पूर्वोत्तर राज्यों की समस्या. क्या इन समस्याओं पे बात नही होनी चाहिए?

पिछले कुछ दिनों में अन्ना हजारे और उनके साथी सिविल सोसाईटी के नेता और प्रवक्ता के रूप में सामने आए हैं. अपने-आप को सिविल सोसाईटी के रूप में देश के सामने पेश किया है. देश के एक बड़े वर्ग का समर्थन भी मिला. फिर क्या दिक्कत है? क्या यह माना जाए कि अन्ना को जो समर्थन मिला था वो केवल जनलोकपाल के मुद्दे पे मिला था?

इसमे कोई शक नही कि प्रशांत जैसे  बयान के बाद टीम अन्ना को मिला कथित विशाल जन समर्थन एक पल में हवा हो जाएगा. प्रशांत क्यों, स्वयं अन्ना ही कश्मीर या पूर्वोत्तर के बारे में एसे बयान देते जो कि जायज है और व्यवहारिक भी है तो उनके साथ भी ऐसी घटनाएं घट सकती हैं. लेकिन इस डर से चुप रहना भी तो जायज नहीं है. भ्रष्टाचार के आलावे जो गंभीर समस्याएं हैं इस देश में और उन प्रॉबलेम्स से जुझ रहे लोग भी तो सिविल सोसाईटी का ही हिस्सा हैं.

 उनके लिए भी तो अन्ना को हुंकाराना चाहिए. किरण वेदी को तिरंगा लहराना चाहिए, अरविंद केजरिवाल को हर टीवी शो में जा कर अपनी बात रखनी चाहिए और प्रशांत भूषण और उनके पिता को कानूनी किताबों में आंख गड़ाना चाहिए. लेकिन ऐसा करने के बदले टीम अन्ना के दूसरे सद्स्य प्रशांत के बयान को उनका निजी बयान बता के खूद को इस घटाना से अलग करने की मुहिम में लगे हुए हैं. आज तो अन्ना ने भी टीवी पे बयान दिया कि  बयान प्रशांत के निजी विचार थे. कोई नहीं कह रहा कि प्रशांत द्वारा दिया गया बयान टीम अन्ना का सामुहिक ब्यान था.

लेकिन सवाल यह है कि प्रशांत ने कश्मीर मुद्दे पे जो बयान दिया वो सही था या गलत. अगर सही कहा तो अन्ना और उनके दूसरे साथियों को प्रशांत के साथ खड़े रहना चाहिए और अगर गलत कहा या ऐसा कुछ कहा जिससे टीम अन्ना या अन्ना हजारे सहमत नही हैं तो अन्ना को मीडिया के माध्यम से देश को बताना चाहिए कि वो कश्मीर मुद्दे पे क्या राय रखते हैं?  जैसे टीम के एक सद्स्य कुमार विश्वास ने देश को साफ-साफ बताया कि प्रशांत ने कश्मीर पे जो बयान दिया है उससे वो सहमत नही हैं. वो इस मसले पे अलग राय रखते हैं. वैसे, कुमार के इस बयान का कोई खास  महत्व नहीं है. क्योंकि जो लोग भी कुमार के कवि संमेलन में बैठे होंगे वो उनकी इस राय से पहले से ही परिचित होंगे और कुमार का कद अन्ना, किरण और अरविन्द की तुलना में बहुत बौना है.

कहने का मतलब कि टीम के नेता अन्ना हजारे. सदस्य, किरण वेदी और अरविंद केजरिवाल को भी कुमार विश्वास की तरह साफ-साफ लहजे में बात करनी चाहिए.

अगर सिविल सोसाईटी के लोग भी नेताओं की तरह घुमा-फिरा के या छुपा-छपा के बतियान करेंगे तो कैसे चलेगा. उन्हें तो हर मुद्दे पर साफ-साफ बोलना चाहिए जैसे वो रामलीला मैदान से बोल रहे थे और उसी तेवर के साथ जो तिहार के बाहर दिखा था.

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