गुरुवार, दिसंबर 29, 2011

"लोकपाल" गीत, कविता या फिर आप जो समझ के पढ़ लें!


 लोकपाल बिल पास हुआ. जन लोकपाल न सही, सरकारी वाला ही. पूरा नहीं थोड़ा ही सही. वैसे भी कब्ज में पूरा का पूरा तो, एक बार में कयम चुर्ण से भी नहीं निकलता. फिर ये तो सरकार के लिए पुराना कब्ज जैसा लग रहा था. सभी के सभी नेता ऐंठ रहे थे. कई दिनों से. थोड़े से के निकलने पे ही सब ने थोड़ी चैन तो ली होगी. खैर, गांधीवादी डॉक्टर लगे हुए हैं, कह रहे हैं कि पूरा निकाल के ही दम लेंगे.

 चलिए...अच्छा है...

अभी तो आप इस गंभीर विषय से जुड़ा मेरा एक बिल्कुल ताजा माल पढिए. यकिन मानिए. अगर आप सामने होते तो पूरे सुर में सुनाता. बिल्कुल "डॉ. कुमार विश्वास" की तरह. कोई नहीं! अभी नहीं तो फिर कभी. बिना अफसोस किए  इसे पढिए और अगर आपतक वही बात  पहूंचे जो हम पहूंचाना चाहते हैं तो ताली के बजाय  "कमेंट" पोस्ट कर जानकारी दीजिएगा (यह तरीका कुमार विश्वास का है. यहां, इतनी तो तमीज है कि जिसका जो माल है उसे उसका क्रेडिट दे दिया जाए)


सरकार बहादूर कर गए मनमानी, अन्ना का अनशन पड़ा न भारी.
कंग्रेस कहे हमने किया, वायदा पूरा. ले आए और पास कराया लोकपाल बिल, पूरा.
बेजेपी लगे है बिलबिलाए,  जैसे खा ली हो ललका मिरचाई.


टीम अन्ना के पांव जमे हैं. हुकारों पे हुंकार फूंके है.
"बिगुल लड़ाई की बजती रहेगी"-टीवी ने,  अन्ना उपवाच बाताए.
सब ने जम के प्रोमो चलाए फिर दिओ ब्रेकिंग-ब्रेकिंग चिल्लाए.


नए-नए लड़कवन ने खुबे "मैं हूं अन्ना" टाईप टोपिया लहड़ाए.
दिल्ली छोड़, मुंबई जमाए...
सब के सब, संसद और सांसद को हैं खुबे गरियाए.
 सब हैं चोर साले-  हर कोई यही है बतिआए.


ई सब के बीच, भ्रष्टाचार है देखो मुस्काय.
कहे-"पहले अपने में फरियाओ......
फिर बच-बचा जाओ तो हमरी तरफ(भ्रष्टाचार) की तरफ आओ."

(भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए खुद को मिटा तक देने वाले उन क्रांतिकारी दोस्तों को एक सप्रेम भेंट जिनमे मुझे ही नहीं पूरे देश को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव दिखाई पड़ रहे हैं. मित्रों आपके माथे की यह गांधीकट-अन्ना वाली टोपी एक दिन जरुर रंग लाएगी. बस आप लोकपाल लाओ का नारा पूरे मन से बुलंद करते रहें. बस कुछ ही दूरी पर वह भारत है जो भ्रष्टाचार से मुक्त है. बिल्कुल तैयार आपके लिए.)

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