मुझे नही लगता कि यह मसला इतना जरूरी था कि देश की संसदका भी एक दिन इसी बारे मे सवाल-जवाब करते हुए गुजरे. वैसे तोहर साल काफी ऐसे मुद्दे रह जाते हैं जिसपर बहस करने के लिए संसद को वक्त ही नही मिलता. समझ नहीं आताकि क्यों इस देश में लोगों को नाहक में मॉरल पॉलिसी बनाने की पड़ी रहती है। कोई इन्सान अपनी मर्जी से उस शोमें जाता है। सब कुछ जानते हुए सच बोलता है तो हमें क्यों तकलीफ हो रही है? क्यों, हम नैतिकता का डंडा भांजनेपर उतारु हो रहे हैं।
कुछ लोगों का तर्क है कि इस शो से देश की सभ्यता और संस्कृति खराब होती है। कोई मुझे बतलाएगा कि देश कीसंस्कृति क्या है और ऐसी कौन-सी हरकतें हैं, जिनसे हमारी सभ्यता चोटिल नहीं होती है। किसी ने पेंटिंग बना दीतो सभ्यता चोटिल होती है, किसी लडकी ने अपनी मर्जी से शादी कर ली या कपडे़ पहन लिए तो संस्कृति घायल होजाती है, सेक्स और काम पर बात हो जाए तो सभ्यता घायल।
कुछ लोगों का तर्क है कि इस शो से देश की सभ्यता और संस्कृति खराब होती है। कोई मुझे बतलाएगा कि देश कीसंस्कृति क्या है और ऐसी कौन-सी हरकतें हैं, जिनसे हमारी सभ्यता चोटिल नहीं होती है। किसी ने पेंटिंग बना दीतो सभ्यता चोटिल होती है, किसी लडकी ने अपनी मर्जी से शादी कर ली या कपडे़ पहन लिए तो संस्कृति घायल होजाती है, सेक्स और काम पर बात हो जाए तो सभ्यता घायल।
आगर इतनी नाजुक है हमारी सभ्यता तो माफ करियेगा, आज के एक बडे़ वर्ग को ऐसी किसी सभ्यता औरसंस्कृति के बोझ को ढोने की कोई जरुरत नहीं है।
आपकी ये थोथी सभ्यता और संस्कृति मुबारक़ हो.. ढोते रहिये!