गुरुवार, जून 02, 2011

रिश्ता होता बड़ा खुबसुरत.

फेसबूक की दुनियां में वैसे तो रोज न जाने कितने हलचल होते रहते हैं लेकिन आज एक एस्टेटस को पढ़कर लगा कि अरे, ये तो मेरी कहानी है. अपनी आपबिती है.     
भोपाल की रहने वाली  एक प्रखर पत्रकार ने लिखा, प्रेम का आभाव कभी न कभी हमारे ही द्वारा, किसी के निश्छल प्रेम का अपमान करने की वजह से ही पैदा होता है. हम खुद ही, जाने-अनजाने, प्रेम स्त्रोतों की हत्या कर देते हैं. 
इन वाक्यों को पढ़ते ही अपने वो दिन याद आने लगे जब मैं प्रेम के अथाह सागर में हर पल गोते लगाता था. वो दिन और रात एकाएक से सामने आने लगे जिन पे कभी प्रेम की कविताएं चमकती थीं.

वो पागलपन याद आने लगा जब हमदोनों एक दुसरों के लिए तरह-तरह के प्यारे संबोधनों का इस्तेमाल करते थे. ये संबोधन दूसरे लोगों के लिए बेमतलब होते थे लेकिन हमे तो उन्हीं में सबकुछ दिखता था.

धीरे-धीरे वक्त बदला, मैं बदला. वो कहती रहीं कि देखो, तुम बदल रहे हो. तुम वो नहीं जिसे मैंने चाहा था, जाना था. सतर्क भी किया. संभलने को भी कई बार कहा. लेकिन मुझपे किसी बात का ज्यादा देर तक असर नहीं रहता.  ये बातें सुनने के बाद लगता कि सही कहा जा रहा है. मुझे चेतना चाहिए. संभलना चाहिए.

 लेकिन कुछ दिन बाद ही मेरी ये सोंच हवा हो जाती और फिर से मेरा दानवी रुप बाहर आने लगता. लेकिन मैं ऐसा नहीं था. न हीं मैं ऐसा व्यवहार करना चाहता था. लेकिन संच ये है कि हर पल ऐसा ही कुछ हो रहा था जिससे प्रेम के सागर में सुनामी उठ रही थी. किसी का कलेजा हर बार छन्नी-छन्नी हो रहा था. उस घायल मन को मैं समझ नहीं पाया. अपने रिश्ते को बचाने के बजाए उसी सागर में डुबो आया. बर्बाद कर बैठा सबकुछ. अपने रिश्ते को फिसलते हुए बहुत करीब से देखा है मैंने. इतने करीब से की खुद पे ही विश्वास नहीं होता.

यह रिश्ता मेरे लिए सपने जैसा था. कुछ टाईम पहले मैं नींद में भी नहीं सोंच पाता था कि मैं जिसे चाहता हूं वो मुझे भी चाहने लगेगी. और वो भी बिल्कुल पागलों की तरह. लेकिन ये सपना हकीकत में बदल गया. हम साथ-साथ आए.

मेरी गलतियों ने इस सपने को बहुत ही जल्दी तोड़ भी दिया. सबकुछ खत्म कर दिया. बर्बाद कर दिया.
आज अपने प्यार को खोकर लूटा हुआ मह्सूस करता हूं.  ठगा हुआ समझता हूं.
उनके मन में आज किसी और के लिए जगह बन रही है. कभी जो प्यारे-दुलारे संबोधन मैं उन्हे दिया करता था आज उन संबोधनों पे किसी और का हक बन गया है.  

खैर, ये एक अलग मसला है. मैं यहां अपने रिश्ते का मर्शिया गान नहीं करना चाहता हूं.
मुझे पता है कि मेरा उनका रिश्ता वाकई बहुत मजबूत है. मुझे आज भी लगता है कि आगे हम जरुर मिलेंगे. फिर से वहीं राते होंगी. फिर से बातों की कविताएं बहेंगी. सपनों के बरसात होंगे.  वो कहती हैं कि ये ओवर कॉन्फिडेंस है. ऐसा कुछ नहीं होगा लेकिन सच तो ये है कि मेरा उनके करीब आना ही या उनके बारे में सोंचना ही ओवर कॉन्फिंडेंस था.

फिर से वहीं आता हूं. फेसबूक स्टेट्स में जो बात कही गई है वो शत-प्रतिशत सही है. अगर आप किसी के प्यार की इज्जत नहीं कर रहे हैं तो आप समझ लीजिए कि जल्द ही आप उस प्यार के लिए बुरी तरह से तरसने वाले हैं. पागल होने वाले हैं. रोने वाले हैं. 

और अगर आप अपने रिश्ते में इन चीजों को आने से रोक पाते हैं तो सही मायने में आप दुनियां के सबसे सुखी और खुशी इन्सान होगें क्योंकि आपको कोई प्यार करने वाला होगा. आपका रिश्ता आपकी ज़िन्दगी को हमेशा महकाता रहेगा. आपको चेहरे पर एक चमक और मन में के दमक रहेगी.
इस महक को खोने के बाद आपके अंदर कुछ भी नहीं बच पाएगा. कुछ भी नहीं. आप खोखले बन के रह जाएंगे. जैसे मैं रह रहा हूं…….