आम जनता के द्वारा निर्वाचित और देश की आम सी दिखने वाली रेल मंत्री ने साल 2010 का रेल बजट पेश कर दिया.
जैसे हर नेता या कहें तो जनसेवक चुनाव के वक्त आम जनता के नाम की माला जपता है. वैसे ही रेल मंत्री और वित्त मंत्री बजट पेश करते वक्त आम जनता के नाम का माला फेरते दिखते हैं. जब भी कोई रेल या वित्त मंत्री अपना बजट भाषण पढ़ता है तो सबसे ज्यादा इसी शब्द “आम जनता” को दुहराता है.
चाहे बजट में इस वर्ग के लिए कुछ हो या न हो लेकिन बात आम जनता की ही होती है. पीछे जब लालू महाराज ने एक फुल एसी ट्रेन चलवाई तो उसे भी आम जनाता के लिए बताया. बाद में वह ट्रेन मझोले अमीरों के लिए चलती दिखने लगी.
लेकिन इसके लिए उस टाइम के रेल मंत्री या उनके अफसरों को तो दोष नहीं ही दिया जा सकता. उन्होंने तो सोचा होगा कि ट्रेन का नाम गरीब रथ है तो गरीब ही चढे़गे.
इस फैसले की ही तर्ज पर लालू ने कई और अहम फैसले लिए थे और उसे आम आदामी के लिए गया बताया था. लेकिन उसके बाद समय बदला और लालू जी की कुर्सी पर ममता जी बैठ गईं. अब ममता जी आम आदमी के लिए फैसलें कर रही हैं. मैं इसकी गारंटी दे सकता हूं कि इनके द्वारा लिया गया हर फैसला भी आम आदमी के लिए ही होगा. ये दीगर है कि उस फैसले से आम आदमी का कुछ भला होता भी है या नहीं.