बुधवार, नवंबर 25, 2009

गंभीर विषय और NDTV

23 दिसंबर की रात के करीब 10 बज रहे होंगे जब मैं अपने एक दोस्त के रूम पर टीवी देख रहा था. उस वक्त हर न्युज चैनल अपने-अपने अंदाज में एक साल पहले की उस घटना को याद कर रहा था जिसने समूचे देश को स्तब्ध कर दिया था, मुम्बई की तेज रफ्तार जिन्दगी को रेंगने पर मजबूर कर दिया था. 


हर चैनल पर मुम्बई हमले के बारे में स्टोरी चल रही थी, ये साफ दिख रहा था कि चैनलों ने इस कार्यक्रम को बनाने में खूब मेहनत की थी, खूब काम किया था. एक चैनल ने तो इस गंभीर विषय पर बने अपने कार्यक्रम को पूरा-पूरा नाटकीय रुप दे दिया था.


अपने को और चैनलों से अलग बताने वाले इस खबरिया चैनल पर एक फिल्मी स्टार कार्यक्रम का संचालन अपने फिल्मी स्टाइल में कर रहा था.


मुझे इस बात से आपत्ति है कि इस कार्यक्रम को एक नाटक वाले स्टाईल में क्यों पेश किया गया? क्या मुम्बई पर हुए हमले को दिखाने का इससे बेहतर तरीका नहीं हो सकता था? आखिर क्या वजह थी कि NDTV जैसे चैनल को इस गंभीर विषय पर बने कार्यक्रम को दिखाने के लिए एक एक्टर की मदद लेनी पड़ी? कार्यक्रम को नाटकिय अंदाज में दिखाना पड़ा?

आज हिन्दी के ज्यादातर खबरिया चैनल हर कार्यक्रम को इसी अंदाज में लोगों के सामने रखते हैं और खूब कमाई कर रहे हैं लेकिन इस चैनल की एक अपनी छवि है लोगों के बीच. चैनल यह क्यों नहीं समझ पा रहा है कि उसके दर्शक खबर को खबर के रुप में ही देखना चाहते हैं. अगर NDTV भी दूसरे चैनलों की राह पर चलने लगेगा तो इससे किसी का भी भला नहीं होगा. न तो चैनल का भला होगा और न ही उसके दर्शकों का.