राजनीति खेल का एक ऐसा मैदान है जहां हर कोई हमेशा अपना-अपना दाव चलता रहता है. यहां कुछ भी पहले से तय नहीं होता. इस मैदान का कोई भी रेफरी या अंपायर दावे से कुछ भी नहीं कह सकता.
इधर हमेशा कोई न कोई खेल चलता रहता है. मजे की बात तो यह है कि इस मैदान के खिलाड़ी हमेशा डटे रहते है और वह भी पूरे मनोयोग से. यहां हर कोई किसी न किसी पर अपना दाव चलाने के लिए तैयार बठा होता है.
अब देखिए, अभी कुछ दिन पहले तक मुलायम सिंह और अमर सिंह एक दूजे के लिए बने दिखते थे. अमर के लिए मुलायम राम थे और मुलायम के लिए अमर सिंह छोटे भाई थे. जब भी मैंने अमर सिंह का कोई इंटर्व्यू टीवी पे देखा तो उसमे अमर सिंह को मुलायम के बारे में कसीदे पढ़ते हुए पाया. अपने को कभी मुलायम का भक्त तो कभी राम भक्त हनुमान कहते हुए पाया.
लेकिन पिछले दिनों एक ही झटके में आज के हनुमान अपने राम से अलग हो गए. सारी यारी-दोस्ती और भक्ति चुल्हे में डाल दिया और तो और हनुमान अपने राम के सबसे बड़े दुश्मन के बारे में कसीदे पढ़ने लगे.
कहीं ये कसीदे इसलिए तो नही पढ़े जा रहे कि राजनीति का यह हनुमान अपने राम के कट्टर विरोधी की गोद में बैठने की तैयारी कर रहा हो. लेकिन अभी कुछ भी कहना अपने आप को झूठा बनाने की तैयारी करना है. सो मैं यह नही कहना चाहूंगा कि अमर मुलायम से अलग होकर माया की जाल में फंसने की तैयारी कर रहे है. फिर वही बात सामने आती है कि यह राजनीति है यहां कभी भी कुछ भी संभव है.
यह भी हो सकता है कि अमर सिंह ने बहन जी की तारीफ में जो कुछ भी कहा है वो केवल मुलायम एंड पार्टी को चौंकाने के लिए था, या फिर वो करना कुछ और चाह रहे हों लेकिन मीडिया और मुलायम के नीतिकारों का ध्यान बांटने के लिए ऐसा कहा हो.
खैर, एक बात तो जरुर है कि वगैर आग के लपटें नहीं उठती मतलब अमर सिंह के घर कुछ न कुछ तो पक रहा है.
एक बात तो तय है कि अमर सिंह के इस ब्यान के बाद मुलायम सिंह अपनी साइकिल- सवारी की कला को और बेहतर करने के बारे में सोच रहे होंगे. सोचना भी चाहिए क्योंकि एक बहुत पुरानी कहावत है "घर का भेधी लंका ढ़ाय".