कुछ दिन पहले हमने चाँद पर छ्लांग लगाई थी तो दुनियाभर के लोगों ने तरह-तरह की बातें बनाई. किसी ने मुंह चमकाते हुए कहा “कोई बड़ी बात नही है चाँद पर जाना!” तो किसी ने नसीहत वाले लहजे में कहा “अच्छा है….पर चाँद के बदले मंगल पर जाना चाहिये था.” कुछ लोगों ने तो इस दिवाली मनाने जैसे मौके पर भी हमे यह याद दिला दिया कि हम गरीब हैं और हमारे यहाँ भूखे-नंगों की एक बहुत बड़ी फौज है”।
लेकिन हमारी सरकार और इसरो वाले सबके सामने डटे रहे और वक्त से पहले चन्द्रयान-1 के नष्ट हो जाने के बाद भी मिशन को पूरा किया. इससे जहाँ एक तरफ सरकार और इसरो के हमारे महारथी खुशी से फूले नही समा रहे थे तो कुछ लोगों ने उन्हीं पुरानी बातों को रटना शुरु कर दिया कि देश से 60 साल में गरीबी नही खत्म हुई, ज्यादातर सरकारी योजना ने अपना मिशन पूरा नही किया, देश में हर पेट को अभी तक खाना नसीब नही हुआ आदि, आदि।
अब आप ही कहिये कि इन मुद्दों को यहाँ उठाने का क्या मतलब है ? मेरे कहने का अर्थ है कि जब इन मुद्दों को उठाने के लिये चुनाव जैसा महत्वपूर्ण समय तय है, काम करवाने के लिये केन्द्र से पंचायत तक जनसेवकों की भीड़ लगी है, पैसा देने के लिए वितमंत्रालय और योजना बनाने के वास्ते योजना आयोग बैठी है तो फिर दिक्कत कहाँ है? और अगर इन सारी व्यवस्थाओं के बाद भी कोई दिक्कत है तो ग्राम कचहरी से लेकर सुप्रीम कोर्ट भी तो बैठी है।
चाँद पर खुदाई कोई छोटी-मोटी बात थोड़े ही है, अरे! ज़मीन पर यह रोज़-मर्रे की बात है. नाजाने, कितने गड्ढे रोज़ खुदते हैं जिसका कोई औचित्य भी नहीं होता. और तो और उस गड्ढे में प्रिंस जैसे कितने बच्चे गिरते हैं. मीडिया भी बेरोज़गारों की तरह गड्ढे ढूंढता फिरता है और हमारी सरकार की नाकामयाबी को सरेआम करने को बेचैन रह्ता है पर अब ऐसा नहीं होगा, क्युंकि अब ज़मीन पर नहीं, चाँद पर होगी खुदाई।
कोई बच्चा गड्ढे में नहीं गिरेगा. हमारी सरकार ने भी ठान ही लिया है कि वो इन कोसू टाइप लोगों के आगे नही झुकेगी तभी तो हमने दो दिन पहले चन्द्रयान-2 चाँद पर उतार दिया, पानी भी खोज निकाली और अब तो चाँद की जमीन पर चल कर ही रहेगी भारतीय कुदाल।
तो आइये, यह भूलकर कि दाल का भाव आसमान छू रहा है, आलू और सेब का भाव बराबर हो गया है, गैस की कीमत बढ़ने वाली है… हम क्युं ना जश्न मनायें, फ़ील-गुड करें।
(विशेष आभार: राहुल गांधी)