जैसे ही “सत्यमेव जयते”
के कंटेट की भनक लगी. उसी समय से हम चिल्लाने लगे. इधर-उधर लिखने लगे. हर मंच से बोलने लगे-देखो, देखो…अब ये
बेचेगा. गरीबी बेचेगा. लाचारी बेचेगा. हमारी परेशानी बेचेगा. एक सुसंस्कृत और सभ्यता
वाले देश की कमियां बेचेगा…आदि-आदि.
जब शो का पहला ऐपिसोड
आया तो हम थोड़े गमगीन हो गए. लेकिन हमने बेचने वाली बात को कहना-दुहराना नहीं छोड़ा.
हम पहले के मुकाबले ज्यादा ताकत और मजबूती
से कहने लगे-देखा, हमने कहा था न? ये बेचेगा. देखो…बेच रहा है. “बाल मजदूरी” जैसे गंभीर
विषय को भंजा लिया. बाल यौन-शोषण के नाम पर सेक्स दिखा और बेच रहा है. उसी समय जिस
समय कभी “रामायण” की राम लीला दिखती थी. दहेज प्रथा पर भी चोट. जो हमारी संस्कृति का
हिस्सा है. आगे-आगे देखिए क्या-क्या बेचते हैं, आमिर. हे राम…घोर कलयुग आ गया है. कोई
कुछ बोलता ही नहीं!
हाय..आमिर तूने ये
क्या किया? क्यों देश की कमियों को बेच रहे हो? देश की ब्रांडिंग कर के भी तो पैसा
बनाया ही जा सकता है. ऐसे ही बनाओ न पैसा.
इसमे तुम्हे दोहरा लाभा है. कमाई की कमाई और हम तुम्हें स्टार भी कहेंगे. सर-माथे रखेंगे.
हम देशभक्त हैं. सभ्यता
और संस्कृति के रक्षक हैं. अपनी बुराइयों को
दुनियां से छुपा कर रखते हैं. जैसे घर में
पखाना-घर बिल्कुल आखिर में, कोने में बनवाते हैं. छुपा कर. वैसे ही ऐसी बुराइयों को
रखते हैं, संभाल कर. दुनियां से बचा कर.
लेकिन तूने तो पखाना-घर
को छोड़. पखाने की टंकी में ही कैमरा घुसेड़ दिया है.
हाय…तू क्यों बेच रहा
है. अभी से भी रूक जा.
वैसे भी ये हमारा(लेखक,
कवि, पत्रकार और फोटोग्राफर्स) माल था. वर्षों संजोया है इसे. बेचने का कभी ख्याल नहीं
आया. लगा था, कौन खरीदेगा इस गंदगी को.? सब नाक दबा के भाग जाएंगे. जुते-चप्पल भी पड़ेगे,
दो –चार.
हां… न बेच पाने के
पीछे एक और कारण भी है. हमने समझा ही नहीं कि इन मुद्दों को बेचा भी जा सकता है. वो
भी इतनी उंची कीमत पर. अगर समझ गए होते तो अबतक
बेच चुके होते. तुम्हारे लिए थोड़े न छोड़ते! इतने नादान नहीं हैं हम. बेचने लायक
जो भी दिखा या दिख रहा है उसे बेच ही रहे हैं. हर पल. हर दिन.
लेकिन फिर भी तुम्हें
ये सब नहीं बेचना चाहिए था. वो भी टीवी पे. प्राईवेट और सरकारी चैनल पे साथ-साथ. गांव
से शहर तक.
हाय…कैसे दिमाग लगाया
तूने, इतना? हमने तो गांवों को छोड़ ही दिया
था. क्योंकि वहां जो रहते हैं वो खरीद नहीं सकते. कंगले लोग बसते हैं वहां तो. उनके
लिए “कृषि दर्शन” ही सही था. लेकिन तूने तो हद कर दी, आमिर?
हमने जिस माल(बाल मजदूरी,
बाल योण-शोषण, दहेज और आगे के ऐपिसोड में आने वाले सभी मुद्दे) को कचरा समझ के, बेकार समझ के फेंक दिया था. डस्टबिन में. (देश
की इज़्ज़त-विज़्ज़त को बचाने का तो एक बहाना था. इसी की वजह से हम फालतू के दबावों से
बचते रहे. कई लोग हैं जो डाइरेक्ट नहीं बेच सकते. हमसे बिकवाना चाहते हैं. दबाव डालते
हैं. लेकिन हमें फायदा तो दिखना चाहिए . तभी तो बेचते) उन्हें ही तूने उठा लिया. लेकिन बेटा…हम नहीं बेच
सके. इसका तो अफसोस है ही.
ये जान लो हम तुम्हें
भी शांति से नहीं बेचने देंगे. दिखा देंगे अपना कमाल. अपना हुनर. तुमने, बड़ी-बड़ी कंपनियों
को हायर किया है, बेचने के लिए. लेकिन तुम्हे नहीं पता. हमने कई साल और इन्फैक्ट अभी
भी कोलकता के “मछ्छी बाज़ार” में दुकानदारी की है. इसके अनुभव का फायदा लेंगे. खूब चीखेंगे,
चिल्लाएंगे. तुम्हारी ऐसी-तैसी कर देंगे. देखते जाओ…
अभी तो हमे केवल फेसबूक
और ब्लॉग पे लिखना शुरू किया है. हमें रौद्र रूप लेने में भी देरी नहीं लगती.
समझ रहे हो न तुम…हर-हर
महादेव. वैसे भी तुम्हारे नाम में “ख़ान” लगा है. फिलहाल तो इशारा ही काफी है. उम्मीद
है कि तुम समझ लोगे और निकल लोगे. हमारे “माल’
पे हाथ साफ करना बंद करोगे.
हम तुम्हे इस धर्मप्रायण,
सुसंस्कृत और सभ्य देश की ज़नता के कोमल और मुलायम गाल पर हर सप्ताह, झांपट नहीं मारने देंगे. हम उन्हें बताएंगे
कि देखिए हम तो आपका मनोरंजन करते आएं हैं, कोमल तरीके से. लेकिन यह आदमी आपको, आप
ही के टीवी सेट के सामने गंदा कहता है और अपनी जेब भाड़ी करता है. हम सब समझा देंगे.
देख लेना तुम.
आखिर में, आमिर बाबू
तुम्हारे लिए एक प्राईवेट मैसेज-तुम में दिमाग तो है. नेक दिल भी लगते हो, लेकिन गुरू,
दिमाग और नेक दिल होने से काम नहीं चलता. वही सेल करो जिसका मार्केट में ट्रेंड है.
ज्यादा हिरोगिरी मत दिखाओ. मार्केट खराब मत करो. इसी में सबका भला होगा. एक बात और
पूरी ईमानदारी से बता देते हैं-जितनी झल्लाहट हममें देख रहे हो उसकी सबसे बड़ी वजह यही
है कि तुम वो बेचने चले हो जिसे हमने समझा ही नहीं, बेचने लायक. अब यह तो हो नहीं सकता
कि वर्षों पुराना “माल” हमारा. हमारे बाप-दादाओं के द्वारा अर्जित किया हुआ और उसकी
बिक्री तुम करो. हमने अबतक नहीं बेचा सो ठीक. लेकिन तुम मत बेचो. हम बेचेंगे.