(यह कोई क्रांतिकारी कदम-वदम नहीं है. एक अदने आदमी द्वारा अपने उपर लगाए गए गंभीर आरोप का जवाब भर है. मुझे खेद है. हां, मुझे बेहद अफसोस है कि लगातार पांच साल तक एक दोस्त की तरह साथ रहने के बाद भी आपको यह लगा कि मेरा भ्रष्टाचार से कोई सरोकर नहीं है. जब मैंने आपसे कहा कि मैं "अन्ना" की इज्जत करता हूं लेकिन....तो आपने कहा कि मैं कॉग्रेस के नेताओं की तरह बोल रहा हूं. नीचे लिखा राइटअप उन्हीं आरोपों से मुक्ति पाने के लिए लिखा गया है या फिर यह लेखन वह भड़ास है जिसकी वजह से पूरी रात सुबह होने का इन्तज़ार रहा.)
प्रिय मित्र
आपका दावा है कि आप मुझे जानते हैं लेकिन जिस तरह से आपने मेरे उपर आरोप लगाएं हैं उससे यह साफ होता है कि आप मुझे यानि विकास कुमार के बारे में बिल्कुल भी नहीं जानते. आपकी शिकायत है कि मैं उनलोगों में शामिल हूं जो भ्रष्टाचार के मुद्दे पे अपना स्टैंड साफ नहीं कर रहे हैं और बीच में खड़े रख कर देखना चाहते हैं. आपने इतना तक कहा कि मैं ऐसा इस वजह से कर रहा हूं कि मुझे भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है. आपके मुताबिक, मैं हर छोटी-बड़ी बात पे अपना स्टैंड रखता हूं. अपनी बात साफ करता हूं. और खुल के बोलता हूं. आपने सही कहा. मुझे बेलाग-लपेट बोलना पंसंद है. बोलते समय मैं इस बात की फिक्र नहीं करता कि सामने वाला मुझे, मेरी बात से कैसे आंक रहा है?
हिन्दू-मुस्लिम समस्या के बारे में, दबे-कुचलों के बारे में, आरक्षण के बारे में और किसी भी मुद्दे पर जिस तरह से अपने दोस्तों के बीच बात करता हूं उसी तरह अपने और वही बातें अपने पापा से भी करता हूं. कई बार ऐसा हुआ है कि इस तरह के मुद्दे पर पापा से बात करते हुए हमारे बीच लड़ाई जैसी स्थिति बन जाती है. वो बाप बन के चिल्लाने लगते हैं और मैं अपने बात पे डटा रहता हूं और आखिर तक अपनी बात के साथ ही रहता हूं. (यह बातें मैं इसलिए नहीं कह रहा हूं कि यह कोई बड़ी घटना है कि या आगे जो बातें कहूंगा वो इस मकसद से नहीं कि मुझे हिरो बनना है या मेरे अंदर कोई हिरो है. यह बातें कहना इसलिए जरुरी हो गईं हैं क्योंकि मुझ पर, मेरे एक बहुत ही करीबी दोस्त ने भ्रष्टाचार पर इसलिए चुप रहने का अरोप लगाया है कि मुझे इससे कोई फर्क नहीं पढ़ता.) भ्रष्टाचार और घुसखोरी पर भी हमारे(मेरे और मेरे पापा ) बीच कई बार बात हुई है. लेकिन यहां मैं अपने-आप को उनके सामने ज्यादा देर तक नहीं टिका पाता. कारण आगे बताता हूं.
लेकिन उससे पहले कुछ और बताना चाहता हूं आपको- मैंने दिल्ली में पांच साल बिताए. पत्रकारिता की पढ़ाई की, तीन सालों तक. इन तीन सालों में केवल संस्थान का फीस था 1.5 लाख. पढ़ाई तीन साल के बाद भी मैं दिल्ली में अगले दो साल तक रहा. इन पांच सालो में हर महीने मुझे चार से पांच हज़ार रुपय मिलते रहे अपने गार्जियन से. दिल्ली से पटना आने के समय. तहलका, में फोटो खिचने का काम मिला था. कैमरा खरीदने के लिए मुझे बीस हज़ार रुपय मिले. और अभी मैंने 50 हज़ार रुपय मंगवाएं हैं ताकि एक बाईक ले सकूं. और पटना की सड़कों पर आसानी से घुम सकूं. इसके अलावा हर महीन जो हज़ार-दो हज़ार रुपय मिलते रहे वो अलग है. उसका कोई हिसाब मैं नहीं लगा सकता.
हिन्दू-मुस्लिम समस्या के बारे में, दबे-कुचलों के बारे में, आरक्षण के बारे में और किसी भी मुद्दे पर जिस तरह से अपने दोस्तों के बीच बात करता हूं उसी तरह अपने और वही बातें अपने पापा से भी करता हूं. कई बार ऐसा हुआ है कि इस तरह के मुद्दे पर पापा से बात करते हुए हमारे बीच लड़ाई जैसी स्थिति बन जाती है. वो बाप बन के चिल्लाने लगते हैं और मैं अपने बात पे डटा रहता हूं और आखिर तक अपनी बात के साथ ही रहता हूं. (यह बातें मैं इसलिए नहीं कह रहा हूं कि यह कोई बड़ी घटना है कि या आगे जो बातें कहूंगा वो इस मकसद से नहीं कि मुझे हिरो बनना है या मेरे अंदर कोई हिरो है. यह बातें कहना इसलिए जरुरी हो गईं हैं क्योंकि मुझ पर, मेरे एक बहुत ही करीबी दोस्त ने भ्रष्टाचार पर इसलिए चुप रहने का अरोप लगाया है कि मुझे इससे कोई फर्क नहीं पढ़ता.) भ्रष्टाचार और घुसखोरी पर भी हमारे(मेरे और मेरे पापा ) बीच कई बार बात हुई है. लेकिन यहां मैं अपने-आप को उनके सामने ज्यादा देर तक नहीं टिका पाता. कारण आगे बताता हूं.
लेकिन उससे पहले कुछ और बताना चाहता हूं आपको- मैंने दिल्ली में पांच साल बिताए. पत्रकारिता की पढ़ाई की, तीन सालों तक. इन तीन सालों में केवल संस्थान का फीस था 1.5 लाख. पढ़ाई तीन साल के बाद भी मैं दिल्ली में अगले दो साल तक रहा. इन पांच सालो में हर महीने मुझे चार से पांच हज़ार रुपय मिलते रहे अपने गार्जियन से. दिल्ली से पटना आने के समय. तहलका, में फोटो खिचने का काम मिला था. कैमरा खरीदने के लिए मुझे बीस हज़ार रुपय मिले. और अभी मैंने 50 हज़ार रुपय मंगवाएं हैं ताकि एक बाईक ले सकूं. और पटना की सड़कों पर आसानी से घुम सकूं. इसके अलावा हर महीन जो हज़ार-दो हज़ार रुपय मिलते रहे वो अलग है. उसका कोई हिसाब मैं नहीं लगा सकता.
अब आप पुछेंगे कि मेरे उपर लगे आरोपो का जवाब देने के लिए यह बताना क्यों जरुरी है कि मुझे, मेरे गार्जियन ने किस कम के लिए कितना पैसा दिया. मैं कहूंगा यह बताना बहुत जरुरी था. मेरे पापा, पुलिस में हैं. बिहार के गया जिले के एक थाने में दरोगा हैं. और मैं बहुत अच्छे से जानता हूं कि उन्होंने मुझे अबतक जो भी रकम दी है उसमें एक बड़ा हिस्सा घूस द्वारा मिले पैसे का है. वो घूस लेते हैं. और मेरे लिए यह उसी लेवल का भ्रष्टचार है जिस लेवल का कलमाड़ी या ए. राजा का. लेकिन मैं उनके खिलाफ शिकायत कर के उन्हें जेल भी भिजवा सकता.
क्योंकि वो मेरे पापा हैं और वो क्राईम कर रहे हैं उसका एक बड़ा हिस्सा वो मुझी पे खर्च कर रहे हैं. मेरी कोशिश रहती है कि मैं उन्हें इस बात के लिए राजी कर सकूं कि वो घूस लेना बंद कर सकें लेकिन इस कोशिश में भी मैं सफल नहीं हो पा रहा हूं. जब भी मैं उनसे इस मामले में बात करता हूं तो वो एक सवाल मेरी तरफ उछाल देते हैं और फिर मैं उनके आगे नहीं टिक पाता. और वो जो कहते हैं वो सही भी है. वो कहते हैं, कि मैं घर का सबसे बड़ा बेटा हूं( मेरा एक छोटा भाई भी है जो बैंगलोर में पापा के पैसे से ही इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है) मैं अपनी जिम्मेदारी उठा लूं तो वो घूस के एक पैसे को भी हांथ नहीं लगाएंगे. ठीक तो कह रहे हैं वो. मैं भी कोशिश कर रहा हूं. खुद को उस स्थिति में लाने की जब उनके सामने खड़ा होकर कह सकूं कि बस, अब और नहीं. मैं हूं!
आप, लोकपाल नामक कानून को लाकर सामुहिक रूप से घूसखोरी और भ्रष्टाचार के खिलाफ नारा बुलन्द करने में विश्वास रखते हैं. मैं आपके विश्वास और भरोसे की कद्र करता हूं. लेकिन मैं इस राक्षस से अपने स्तर पर लड़ाई लड़ने की कोशिश कर रहा हूं. मैं अपना काम बगैर घूस दिए सरकारी दफतर से करवा रहा हूं और बगैर पत्रकार होने की धमक दिए. मै इसके लिए आरटीआई का इस्तेमाल कर रहा हूं. और इस लड़ाई को मैं तब से लड़ रहा हूं जब आप आंदोलित होकर सड़कों पे भी नहीं आए थे. पूर्व में कई जगहों पर मैंने पुलिस के सिपाही को अपना काम निकलने के लिए या निकल जाने के बाद रकम दी है. और अब मैं ऐसा कुछ भी नहीं करने वाला.
आप लोकपाल के रास्ते पूरे देश से भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए आंदोलित हैं. बेशक, आपकी लड़ाई बड़ी है. आप समूचे देश से भ्रष्टाचार खत्म करना चाहते हैं. आपको, आपकी लड़ाई में कितनी सफलता मिलेगी इसे लेकर आपके दिमाग में संदेह होगा. लेकिन जो लड़ाई मैं लड़ रहा हूं उसमे मुझे सौ फिसदी जीत दिखती है. और जिस दिन मैं अपने इस लड़ाई को जीत लूंगा उसी दिन भ्रष्टाचार के खिलाफ नारे लगा पाउंगा. इसके बीच में मैं भ्रष्टाचार पर चुप रहते हुए ही सबकुछ देखना चाहूंगा.
आपको जन लोकपाल का इन्तज़ार है और मुझे अपनी उस जीत का इन्तज़ार है.
शुक्रिया.