सुरेश कलमाड़ी जी,
नमस्ते,
वैसे तो पत्र के शुरु में हालचाल पूछा जाता है लेकिन मैं ऐसा करके जले पर नमक छिड़कने का काम नहीं करूंगा. हर रोज जानकारी मिलती रहती है कि कैसे आप जैसा एक खांटी खेल प्रेमी और देश की इज़्ज़त का सच्चा रखवाला परेशान किया जा रहा है.
रोज, सुबह की अखबार खोलते हीं सबसे पहले आपकी खैरियत जानने के लिए गेम से जुड़ी खबरों की तरफ आंखे दौड़ाता हूं. लेकिन हर दिन निराशा ही हाथ लगती है. रोज कोई न कोई आपको बुरा-भला बोल कर निकल जाता है. एक दो दिन पहले तो हद ही हो गई. शांत चित्त और प्रसन्न मुख वाले प्रधानमंत्री जी ने भी आपको हड़का दिया. ज्यादातर मौके पर केवल मुस्कान बिखेरकर निकल जाने वाले अपने सरदार जी से भी चुप नहीं रहा गया.
मुझे समझ नहीं आ रहा कि आपने ऐसा क्या कर दिया है जो हर कोई आपकी तरफ हुडकी मार रहा है. मुझे क्या, ज्यादातर लोगों को नहीं पता होगा कि हुआ क्या है. बस बोलना है सो बोले जा रहे हैं.
कोई सामने आ कर बताए तो कि आपने किया क्या है? आखिर दोष क्या है?
अगर आपकी कोई गलती है तो वो बस इतनी कि आपने इस भुक्खड़ और हमेशा ही गरीबी में रहने वाले देश के लिए इतने बड़े गेम की मेजबानी हासिल की.
आपने तो अच्छा ही सोचा था. आपको क्या पता था कि यहां के लोग इंदिरा जी के काल में भी गरीब थे और आज मनमोहन की सरकार में भी हैं. वैसे ज्यादातर नेता आपको इस बात के लिए नहीं कोस रहे कि आपने इस गेम की मेजबानी क्यों ली और इतना पैसा एक गेम के लिए क्यों खर्चा जा रहा है. इन्हें भी पता है कि इस देश से गरीबी न अब तक गई है और न आगे कभी जाएगी. यहां गरीब के अमीर बनने का एक ही आसान रास्ता है. सबको नेता बनना पड़ेगा. केवल नेता से काम नहीं चलेगा. मंत्री बनना पड़ेगा. जो गरीब लोग वक्त रहते नेतागिरी में आ गए उनका आज देखिए. दस-पांच लखपति को तो अपने अगल-बगल रखते हैं.
खैर, मैं मुद्दे से भटक गया था. माफ करिएगा! इस देश में सबको ज्यादा बोलने की आदत है. क्या नेता, क्या जनता और क्या पत्रकार. सबके-सब अति बोलक्कड़ होते हैं. बड़े बुजुर्ग कह गए हैं कि ज्यादा बोलने से काम खराब होता है. हर कोई आपको बोल रहा है, झाड़ रहा है और इससब में खेल की तैयारी खाक होगी बस भसड़ हो रहा है. आप ऐसा मत होने दीजिए. जिस मन और हिम्मत से आपने गेम का आयोजन दुनियां से छीना था उसी लगन से लगे रहिए.
अगर ध्यान लगाने में दिक्कत हो रही हो तो एक-दिन के लिए बाबा रामदेव जी के यहां से हो आइए. बड़ा अच्छा ध्यान लगवाते हैं. वैसे उन्हें भी आपकी तरह देश की इज़्ज़त बहुत प्यारी है. तभी तो बाबागिरी छोड़कर राजनीति के अखाड़े में लंगोट बांधने के लिये तैयार हैं. रामदेव जी आपको निराश नहीं करेंगे वो हर संभव आपकी मदद करेंगे.
हंसी तो तब आती है जब घुसखोड़ी, घपलों और घोटालों के दम पर खड़े हमारे माननीय जनसेवक आपको गेम में हो रही भ्रष्टाचार के लिए गरियाते हैं. क्या जमाना आ गया है? जिन पर घोटालों के अनगिनत मामले लदे हैं, जो गरीबों के पैसे से पार्क और पार्कों में अपनी आदमक़द मुर्तियां लगवा रहे हैं वही लोग आप पर निशाना साध रहे हैं. जो राहत का सामान और कचरा तक कोंच कर ठाठ से बैठे हैं वही नेता आप पर गरीबों के पैसे लुटाने का आरोप लगा रहे हैं.
मैं कहता हूं कि अगर आप एकाध करोड़ लुटा भी रहे हैं या कुछ लाख-वाख इधर-उधर हो भी जाता है तो इसमे गलत क्या है. इतना बड़ा आयोज़न है तो हल्का-फुल्का इधर-उधर तो होगा ही. इसमे कौन सी नई बात है!
सो कलमाड़ी जी, मैं आपको कहना चाहता हूं कि आप इन गीदड़ भवकियों से हड़किएगा मत. ये सब तो चलता रहेगा. एक कहावत है हमारे इलाके में “हाथी चले बाज़ार, कुत्ता भौंके हज़ार”. बस समझिए ऐसा ही कुछ हो रहा है. एक बार खेल खत्म हुआ कि सबकुछ हज़म हो जाएगा.
जहां तक बात हो रही है जांच की तो उसके बारे में आपसे क्या कहना. हमारे यहां के जांच तो बस चलते हैं, और चलते हैं… बस चलते ही जाते हैं. इनका कोई नतीज़ा नहीं निकलता. वैसे ये-सब तो आप मुझसे बेहतर ही जानते हैं. आपकी दाढ़ी के बाल तो पक चुके हैं ये सब देखते-समझते. सो आप डरिएगा नहीं. घबराइएगा नहीं. टूटिएगा नहीं. बस अपने मिशन में लगे रहिए. मिशन कॉमनवेल्थ गेम.
हां चलते-चलते एक जरुरी बात. इनसब झमेलों से थोड़ा समय निकालकर अपने परिवार को भी दीजिए क्योंकि बुरे वक्त में आपका परिवार ही आपके साथ रहेगा. वैसे खुदा न करे कि आप जैसे सच्चे सिपाही को कभी कोई बुरा टाईम देखना पड़े.
आपकी सलामती और लम्बी उमर की दुआ के साथ इस पत्र को खत्म करता हूं. विशेष बातें किसी प्रेस बैठक में मिलने पर.
आपके जज़्बे को सलाम!!
राष्ट्रमंडल खेल की जय हो!!