जेएनयू से कोई सीधा संबंध नहीं रहा है. हां, कुछ साल पहले तक यह जरुर सोचता था कि इस महान कहे और माने जाने वाले कैंपस से कोई न कोई एक कोर्स जरुर करूंगा. लेकिन अब यह ख्याल भी त्याग चुका हूं. लेकिन पिछले दो-तीन साल से मुनिरका में टिका हूं तो इसके पीछे एक लालच यह है कि जेएनयू बगल में है. इस जगह को हर कोई नहीं समझ सकता. हर कोई जी नहीं सकता. असल में दोष हमारा नहीं है. हमारे आसपास जो कुछ भी है वो सबकुछ इतना दूषित हो चुका है कि हम साफ-सुथरी जगह को पचा नहीं पा रहे. हमे लगने लगता है कि असली प्रदूषण तो यहीं है. ऐसा ही कुछ-कुछ हो रहा है, जेएनयू के साथ!
यहां एक कहानी सुनाने के लिए रुकता हूं. फिर मुद्दे पर बात आगे बढ़ेगी. कहानी इस तरह से है-शहर में रहने वाला एक परिवार वर्षों से एक ग्वाले से दूग्ध ले रहा था. ग्वाला दूग्ध में पानी मिलाकर देता था. परिवार को पानी वाले दूग्ध की आदत पड़ गई और वो इसी में मस्त थे. खुशी-खुशी खाते-पिते थे, पानी वाला दूग्ध. हुआ यह कि बीच में ग्वाले को लंबे समय के लिए अपने गांव जाना पड़ा. तब परिवार ने दूसरे ग्वाले से दूग्ध लगवा लिया. उस ग्वाले ने परिवार को दूग्ध देना शुरु किया. परिवार के हर सद्स्य की तबीयत बिगड़ गई. किसी को उलटी तो किसी को दस्त लगने लगा. दो-एक सदस्यों को तो कई सांझ भुख ही नहीं लगी. सब परेशान, हैरान. ध्यान देने पर सबने पाया कि दुग्ध कुछ ज्यादा ही गाढ़ा आ रहा है और इसी वजह से सबको दिक्कत हो रही है. परिवार के मुखिया ने अगले दिन सुबह-सुबह ग्वाले को दवोचा. कहा-साले असली दुग्ध पिलाने के नाम पर दुग्ध में युरिया मिला रहे हो. हमसब की तबीयत खराब हो रही है. तुम्हे पुलिस में दे दूंगा. ग्वाले को मामला समझते देर न लगी. उसने कहा-मालिक माफ कर दें. कल से एकदम सही दुग्ध देंगे. फिर अगली सुबह से दुसरा वाला ग्वाला भी दुग्ध में पानी मिलाकर देने लगा. और इसके बाद परिवार की शिकायत दूर हो गई. सबकी तबीयत ठीक रहने लगी.
तो मुझे लगता है कि जैसे उस परिवार को वर्षों से पानी वाले दुग्ध खाने और पीने की आदत पड़ गई थी और असली दुग्ध से उन्हें परेशानी होने लगी थी ठीक उसी तरह ही हमे ऐसे कैंपसों की आदत पड़ गई है जहां आए दिन कोई न कोई ड्रेस कोड, आने-जाने का समय या ऐसे ही दुसरे-तीसरे फरमान जारी होते रहते हैं. और हम इसी वजह से जेएनयू को पचा नहीं पा रहे हैं.
एक सिरफिरे लड़के ने (जो कि इस कैंपस का छात्र भी था ) ने एक लड़की पर हमला किया, उसे जान से मारने की कोशिश की और फिर खुद को भी खत्म कर लिया . इस घटना के बाद हर कोई यही कहता नजर आ रहा है कि जेएनयू में जो थोड़ी-बहुत आजादी है उसकी वजह से यह हुआ.
इस कैंपस में सुरक्षा की कमी है. यहां लड़के-लड़कियों के आने-जाने और देर रात तक पूरे कैंपस में कहीं भी घुमने-टहलने पर कोई रोका-टोकी नहीं है इसलिए ऐसा हुआ. ऐसा किसलिए हुआ इसकी असली वजह कहीं और है लेकिन लोगों के निशाने पर जेएनयू कैंपस है. ऐसे कितने कॉलेज और कैंपस हैं जहां पर तरह-तरह के रोक हैं. जैसे रात में इतने बजे के बाद नहीं आना है.
लड़के और लड़कियों के हॉटल के बीच बड़ी सी दिवार या दोनों के बीच बहुत अधिक दूरी. बैंग्लोर में एक ऐसा इंजिनियरिंग कॉलेज भी है जहां कैंपस में लड़के और लड़कियों को साथ देखने पर हजार रुपये का फाईन है. लेकिन पिछले दिनों इसी कॉलेज में एक लड़के ने प्रेम संबंध में नाकामयाबी की वजह से खुद को पंखे से झुला लिया. अब कोई बताए? और ऐसा यह कोई अकेला कैंपस नहीं है.
बहुत से ऐसे कैंपस हैं जिंहोंने अपने यहां हर तरह के रोक लगाए हुए हैं लेकिन फिर भी उस कैंपस में भी ऐसी दुखद घटनाएं घटती रहती हैं. हमे इस तरह की हर घटना के पीछे की असल वजह को समझने की कोशिश करनी होगी. और इस तरह की हर घटना की जड़ को खोजकर उसमे मट्ठा डालने का किया जाना चाहिए और फिलहाल हमसब ऐसी हर घटना के बाद इस काम के अलावे सबकुछ करते हैं.
यहां एक कहानी सुनाने के लिए रुकता हूं. फिर मुद्दे पर बात आगे बढ़ेगी. कहानी इस तरह से है-शहर में रहने वाला एक परिवार वर्षों से एक ग्वाले से दूग्ध ले रहा था. ग्वाला दूग्ध में पानी मिलाकर देता था. परिवार को पानी वाले दूग्ध की आदत पड़ गई और वो इसी में मस्त थे. खुशी-खुशी खाते-पिते थे, पानी वाला दूग्ध. हुआ यह कि बीच में ग्वाले को लंबे समय के लिए अपने गांव जाना पड़ा. तब परिवार ने दूसरे ग्वाले से दूग्ध लगवा लिया. उस ग्वाले ने परिवार को दूग्ध देना शुरु किया. परिवार के हर सद्स्य की तबीयत बिगड़ गई. किसी को उलटी तो किसी को दस्त लगने लगा. दो-एक सदस्यों को तो कई सांझ भुख ही नहीं लगी. सब परेशान, हैरान. ध्यान देने पर सबने पाया कि दुग्ध कुछ ज्यादा ही गाढ़ा आ रहा है और इसी वजह से सबको दिक्कत हो रही है. परिवार के मुखिया ने अगले दिन सुबह-सुबह ग्वाले को दवोचा. कहा-साले असली दुग्ध पिलाने के नाम पर दुग्ध में युरिया मिला रहे हो. हमसब की तबीयत खराब हो रही है. तुम्हे पुलिस में दे दूंगा. ग्वाले को मामला समझते देर न लगी. उसने कहा-मालिक माफ कर दें. कल से एकदम सही दुग्ध देंगे. फिर अगली सुबह से दुसरा वाला ग्वाला भी दुग्ध में पानी मिलाकर देने लगा. और इसके बाद परिवार की शिकायत दूर हो गई. सबकी तबीयत ठीक रहने लगी.
तो मुझे लगता है कि जैसे उस परिवार को वर्षों से पानी वाले दुग्ध खाने और पीने की आदत पड़ गई थी और असली दुग्ध से उन्हें परेशानी होने लगी थी ठीक उसी तरह ही हमे ऐसे कैंपसों की आदत पड़ गई है जहां आए दिन कोई न कोई ड्रेस कोड, आने-जाने का समय या ऐसे ही दुसरे-तीसरे फरमान जारी होते रहते हैं. और हम इसी वजह से जेएनयू को पचा नहीं पा रहे हैं.
एक सिरफिरे लड़के ने (जो कि इस कैंपस का छात्र भी था ) ने एक लड़की पर हमला किया, उसे जान से मारने की कोशिश की और फिर खुद को भी खत्म कर लिया . इस घटना के बाद हर कोई यही कहता नजर आ रहा है कि जेएनयू में जो थोड़ी-बहुत आजादी है उसकी वजह से यह हुआ.
इस कैंपस में सुरक्षा की कमी है. यहां लड़के-लड़कियों के आने-जाने और देर रात तक पूरे कैंपस में कहीं भी घुमने-टहलने पर कोई रोका-टोकी नहीं है इसलिए ऐसा हुआ. ऐसा किसलिए हुआ इसकी असली वजह कहीं और है लेकिन लोगों के निशाने पर जेएनयू कैंपस है. ऐसे कितने कॉलेज और कैंपस हैं जहां पर तरह-तरह के रोक हैं. जैसे रात में इतने बजे के बाद नहीं आना है.
लड़के और लड़कियों के हॉटल के बीच बड़ी सी दिवार या दोनों के बीच बहुत अधिक दूरी. बैंग्लोर में एक ऐसा इंजिनियरिंग कॉलेज भी है जहां कैंपस में लड़के और लड़कियों को साथ देखने पर हजार रुपये का फाईन है. लेकिन पिछले दिनों इसी कॉलेज में एक लड़के ने प्रेम संबंध में नाकामयाबी की वजह से खुद को पंखे से झुला लिया. अब कोई बताए? और ऐसा यह कोई अकेला कैंपस नहीं है.
बहुत से ऐसे कैंपस हैं जिंहोंने अपने यहां हर तरह के रोक लगाए हुए हैं लेकिन फिर भी उस कैंपस में भी ऐसी दुखद घटनाएं घटती रहती हैं. हमे इस तरह की हर घटना के पीछे की असल वजह को समझने की कोशिश करनी होगी. और इस तरह की हर घटना की जड़ को खोजकर उसमे मट्ठा डालने का किया जाना चाहिए और फिलहाल हमसब ऐसी हर घटना के बाद इस काम के अलावे सबकुछ करते हैं.