एक टीवी पत्रकार ने इस ख़बर को अपने अन्दाज़ मे तीन-चार पोर्टल को बांटा और हर पोर्टल और कुछ ब्लॉग ने इसे अपने यहाँ जगह दी.
मैं एक वेब ब्लॉग का खास तौर पर ज़िक्र करना चाहूँगा क्योंकि इस ब्लॉग को चलाने वाले ज़्यादातर युवा हैं और मुझे नही लगता कि इस ब्लॉग से उन सभी का कोई व्यवसायिक हित जुड़ा होगा. मै हाल हीं मे चर्चा मे आए ब्लॉग “सलाम ज़िन्दगी” के बारे में बात कर रहा हूँ. मैं इस ब्लॉग से बहुत प्रभावित हूँ क्योंकि उसके सदस्य अच्छा लिखते हैं और दिल से लिखते हैं. लेकिन मालूम नहीं, इस खबर को लिखते समय उन लोगों को क्या हो गया था!
अव्वल तो मुझे ये कोई इतनी बड़ी घटना ही नहीं लगती कि इसे छापा या कवर किया जाए. उस खबर के साथ लगी फोटो से उस बुजुर्ग साधू की उम्र का साफ-साफ पता चलता है और अगर उस अदाकारा को कोई ऐतराज़ नहीं है तो हमें क्या पड़ी है कि हम उसमे अश्लीलता खोज़ते फिर रहें हैं और उस साधू की नीयत मे खोट देख रहें हैं.
दूसरी बात अगर हम ऐसा कर भी रहे हैं मतलब एक औरत पर हो रहे अत्याचार को दुनिया के सामने ला रहे हैं तो किस अन्दाज़ में. बानगी के तौर पर एक-दो शीर्षक दे रहा हूँ जो उस खबर के लिये लिखे गए.
1. आशीर्वाद मे चुंबन…..!......जय हो…….!!(भड़ास फ़ॉर मीडिया)
2. मंदिर में तार-तार हुई मर्यादा-आशीर्वाद में चुंबन (हिन्दीमीडिया.इन)
3. शिल्पा जी एक किस यहाँ भी…….(सलाम ज़िन्दगी, एक सामुहिक ब्लॉग)
यहाँ, इन तीनों पोर्टल का नाम मैने इसलिये लिया क्योंकि मै इनको नियमित रूप से देखता हूँ और कहीं न कहीं एक जुड़ाव भी महसूस करता हूँ, तीनो की अपनी-अपनी साख है.
एक मिनट के लिए अगर मै यह मान भी लूँ कि दोनों पोर्टल व्यवसायिक हैं और उनकी कुछ मजबूरियाँ रहीं होंगी इस खबर को देने के पीछे तो ये समझना मुश्किल हो रहा है कि “सलाम ज़िन्दगी” ने इस ख़बर को क्यों उठाया और वो भी इस तरह कि (शिल्पा जी एक किस यहाँ भी…….) शीर्षक के साथ!! इस ब्लॉग के होम पेज पर जिन पाँच लोगों की तस्वीरें लगीं हैं उन में से दो लड़कियाँ हैं जिन्हेने इस खबर को इस शीर्षक के साथ जाने दिया. अक्सर मैने ऐसा देखा है कि लड्कियाँ इस तरह की खबरों पर विरोध करना चाहती हैं लेकिन उन्हे वहाँ मार्केट की माँग बता कर या नौकरी से निकाले जाने का धौंस दिखा कर चुप करा दिया जाता है लेकिन यहाँ तो ऐसा कुछ भी नहीं था फिर क्यों लड़कियाँ चुप रहीं?
वहीं, हिन्दीमिडिया की सम्पादक एक महिला हैं और मुझे ताज्जुब हो रहा है कि उन्हें एक साधू जो अपनी ज़िन्दगी की आखरी पायदान पर है, के चुम्बन से मन्दिर की मर्यादा भंग होती दिख गई लेकिन खबर की पहली ही लाईन “रिचर्ड गैरे के जबरन चुंबन की चुभन झेल चुकी शिल्पा शेट्टी के गुलाबी गाल पर एक बार फिर से चुंबन जड़ दिया गया। फर्क इतना है कि पहले उन्हें अभिवादन के नाम पर चूमा गया था इस बार आशीर्वाद में!” मे इस्तेमाल किये गये शब्द “गुलाबी गाल” से कोई आपत्ती नहीं हुई. अगर इस लाइन से इस शब्द को हटा दिया जाता तो ऐसा नहीं है कि लाईन का मतलब बदल जाता. हाँ, औरत की मर्यादा थोड़ी बच जाती.
अगर ये इतनी ही बड़ी ख़बर थी तब तो एक बाप अपनी जवान बिटिया को और एक माँ अपने जवान बेटे को भी चूमने से कतराएगी.
क्या हमारे यहाँ चुम्बन का एक ही मतलब होता है? क्या किसी को चूमने का एक यही मतलब होता है कि आप के मन में सेक्स की भावना जग रही है? अगर हर चुम्बन का यही मतलब हो तब तो ठीक है लेकिन अफसोस ऐसा है नहीं.
ख़ैर, मुद्दे पर आ जाते हैं. अगर आप वेब पोर्टल वाले और हम ब्लॉग वाले भी ख़बर में तड़का मार कर अपने पाठकों को परोस रहे हैं तो पत्रकारिता के किस मर्यादा का पालन हो रहा है?
अन्त, आपसब से अनुरोध है कि वेब को वेब ही रहने दीजिये टीवी मत बनाइए……
7 टिप्पणियां:
आपके इस लेख को पढ़कर बड़ा मज़ा आया. इन वेब पोर्टल्स और ब्लॉग के नाम और फिर उसके कंटेंट को देखकर, बचपन पे पढी वो कहावत याद आ गयी, "नाम बड़े पर दर्शन छोटे", या "ऊँची दूकान, फीकी पकवान".. सलाम ज़िन्दगी से तो वाकई ये उम्मीद ना थी.. क्यूंकि हाल ही में उसका पाठक बना था.. मेरे दिल में भी उसके लिए जो आदर का भाव था एको कहीं ना कहीं कम ज़रूर हुआ है. भडास फॉर मीडिया से भी ऐसी उम्मीद नहीं थी... हिंदी.इन पर इस खबर को मसालाई अंदाज़ में पडोसने का मतलब, नहीं समझ पा रहा..
बहुत बढ़िया विकास भाई..
"जो देखते है वहीं कहने के आदी हैं हम अपने शहर के सबसे बड़े फसादी हैं"।...सबसे पहले तो मैं आपसे तह-ए-दिल से माफी चाहूंगी की हमारी इस पोस्ट से आपकी भावनाएं आहत हुईं। हमारा मकसद किसी को ठेस पहुंचाना नहीं था। इस पोस्ट में हम सिर्फ उन बाबा की भावनाओं को सामने रखना चाहते थे जिनके गुणगान से लोगों की सुबह शुरू और शाम खत्म होती है। ये अंधविश्वास का ऐसा ढोंग करते हैं जिससे लोग अपनी जान दे भी देते हैं और अपनों की जान ले भी लेते हैं,संसार को मोह माया से विरक्त होने का भाषण देने वाले ये बाबा कितनी मोह माया में फंसे है ये सबके सामने रखना ज़रूरी था। और मैं ये ज़रूर कहना चाहूंगी की सलाम ज़िन्दगी कोई व्यवसायिक ब्लॉग नहीं है जिसके पीछे हमारा मकसद नाम या पैसा कमाना हो। बात रहीं ब्लॉग की सदस्य और एक लड़की होकर ऐसे शीर्षक के साथ ख़बर ब्लॉग तक जाने की, तो मान्यवर मुझे दुख होता है कि पत्रकारिता से जुड़े होने के बाद भी आप एक पुरूष और महिला के स्तर पर बात कर रहें है। अगर एक व्यक्ति के स्तर पर बात करते तो मुझे ज्यादा खुशी होती आपने बार-बार औरत की मर्यादा और उसकी सीमाओं की दुहाई दी है तो सलाम ज़िन्दगी एक ऐसा ब्लॉग है जहां सच हर मर्यादा और सीमा से बाहर है। अगर आप समाज में औरत की मर्यादा को परिभाषित करना ज़रूरी समझते हैं तो सबसे पहले आपको उन समाज के ठेकेदारों को समझाना होगा जो दिन में औरत की अस्मत का झंडा लिए सड़कों पर अंशन करते नज़र आते है और रात में उसी की इज्जत को तार-तार करते हैं।
सुधी सिद्घार्थ
सुधी जी,
आपने मेरे पोस्ट को पढा और अपने विचार दिएं सो शुक्रिया.....!!!
अब आपकी कही बात पर आते हैं. आपने कहा "माफी चाहूंगी की हमारी इस पोस्ट से आपकी भावनाएं आहत हुईं" इस बारे मे कहना चाहुँगा कि मेरी भावनाएँ तो मर चुकीं हैं क्योंकि एक पत्रकार हूँ और पत्रकार की अपनी किसी भवना के लिए कोई स्थान नही हैं इस बिरादरी में....
अब अपकी कही दुसरी बात पर आता हूँ आपने कहा "इस पोस्ट में हम सिर्फ उन बाबा की भावनाओं को सामने रखना चाहते थे...."
अगर सलाम ज़िन्दगी ने इस खबर को इस नज़र दिया होता तो शिर्षक नही होनी चाहिए थी. शिर्षक को देखकर और समुचे खबर को पढ्कर कहीं भी ऐसा नही लगता कि आपलोगों ने बाबा पर निशाना साधा है और एक बात यह भी जोड़ना चाहुँगा कि एक अधेड़ उमर का बाबा कैमरे के सामने शिल्पा की सहमति से अगर उन्हे चूम रह है, तो इसमें आपको कहाँ से पाखंड दिख गया, और कौन सा अंध-विश्वास तोड़ने की कवायद में आप लग गयीं.
आपने कहा कि मुझे व्यक्ति के रूप मे बात करनी चाहिये ना कि पुरुश या स्त्री के रूप में, यानि आप्के अनुसार मै पक्षपात कर रहा हूं, य पुरुश मानसिकता मेरे उपर हावी है. मैने जो कुछ लिखा और आपके दल मे दो लड़कियों के होने की बात कही उसका बस इतना सा मतलब था कि आप लोगों के होते हुए भी इस तरह के शीर्षक कैसे लगाये गये, और आप इसे किस तरह जस्टीफ़ाय करेंगे कि ये षीर्षक सच्चाई को बता रही है.
आपने कहा, "सलाम ज़िन्दगी एक ऐसा ब्लॉग है जहां सच हर मर्यादा और सीमा से बाहर है।" अव्वल तो शिल्पा जी पर जो आपका पोस्त था, उस हिसाब से आपके इस लाइन पर हँसी आती है.. क्युंकि यहाँ सच आप जानती नहीं, सच दिखाने और बताने की कोशिश कर रही हैं, टीवी के उस तर्ज पर कि जो दिखता है, वो बिकता है.
इस पोस्त को डालने के पीछे मेरा मकसद यह नहीं था कि मैं सलाम ज़िन्दगी की छवी को धुमिल करूं.. मै खुद सलाम ज़िंदगी का हिस्सा हूं, ये मैने पहले ही बता चुका हूँ. मेरा मन्तव्य बस इतना था कि हम युवा अगर यहाँ हैं, तो कुछ अच्छा लिखे और करें, ना कि किसी बिकाऊ खबर को मुद्दा बनायें. उम्मीद है कि आप मेरी बात समझेंगे..
सलाम ज़िन्दगी के संचालकों और उस पर लिखने वालों को विकास की बात व्यक्तिगत तौर पर नहीं लेनी चाहिए और उनका मंतव्य समझने का प्रयास करना चाहिए। अब तक सलाम जिंदगी को पढ़ते हुए, मुझे तो लगा था कि वे विकास की बात से सहमति जताएंगे, लेकिन यहां तो उलटा ही मामला नजर आ रहा है।
jo kuch bhi aaapne kaha wo sahi hai par aisa to hoga hi kyunki aaj web bhi media ka aek hissa ban gaya hai....to alag alag websites aur blog chatpati khabrein post kar ke highlight hona hi chaheinge
janab apne apni lekhni se jin baaton ko likha hai sahi mayne mein ye sach hai jaroorat hai in par aml karne ki jarrorat hai ki jis stambh ke hum hisse hain kya uski nib aur chaat ke bich ka kiya kaam sahi ho reha hai ya nahi ye hamari vishwas niyata ko sahi maayne mein samapt kar rahe hain apka pryas sarahniya hai vikas bhai
janab apne apni lekhni se jin baaton ko likha hai sahi mayne mein ye sach hai jaroorat hai in par aml karne ki jarrorat hai ki jis stambh ke hum hisse hain kya uski nib aur chaat ke bich ka kiya kaam sahi ho reha hai ya nahi ye hamari vishwas niyata ko sahi maayne mein samapt kar rahe hain apka pryas sarahniya hai vikas bhai
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