बुधवार, सितंबर 29, 2010

लालू के लाल का असमंजस!!

बिहार के पूर्व मुखिया लालू यादव अपने पटना वाले सरकारी आवास के अहाते में पेट तक लुंगी लपेटे और उपर एक गंजी डाले लट्टू की तरह चक्कर काट रहे हैं. सामने रखे टीवी सेट पर लगातार नीतीश के कविता पाठ की खबर चल रही हैं और इसी खबर को सुनकर लालू के टहलने की स्पीड बढ़ गई है. उन्होंने टहलते हुए ही आवाज लगाई, “अरे, कौउनों बंद करो इ टीवी को. का बकवास दिखा और सुना रहे हैं ससुरे….”

अंदर से किसी ने आकर टीवी सेट का कान घुमा दिया. टीवी तो बंद हो गया लेकिन साहब के कानों में नीतीश की कविता लाउड स्पीकर की तरह बज रही थी. लालू ये सब सोच ही रहे थे कि पीछे से आवाज आई. “ पापा...मैं गाड़ी ले जा रहा हूं.”

आवाज की तरफ लालू पलटे तो देखा कि बेटा (तेजस्वी) कंधे पर क्रिकेट का किट लिए बाहर की तरफ जा रहा है. बेटे को आवाज लगता हुए बोले, “खाली खेल-वेल के चक्कर में रहते हो, अभी इधर आओ..”

 “मुझे प्रैक्टिस के लिए देरी हो रही है.” बेटे ने जवाब दिया. लालू थोडा तमक कर बोले, “बुला रहे हैं न. अभी यहां आओ. प्रैक्टिस के लिए बाद में जाना”

पापा के गर्म मूड को भांप कर तेजस्वी ने अपने कंधे से क्रिकेट का किट निचे पटक दिया और पास आकर बोला, “क्या है?”

बेटे के कंधे पर हाथ रखते हुए लालू ने थकी आवाज में पूछा, “आज का समाचार देखे कि नहीं.”

 तेजस्वी, “नहीं क्या हुआ?”

“ई नितीशवा सरेआम हमारा मजाक उड़ा रहा है, हमरे और तुम्हरे माई के उपर कविता लिखवा कर पढ़ रहा है.”

तेजस्वी, “अच्छा! तो फिर हम अपने वकील से बात करके उनके उपर मानहानी का दावा करवा देते हैं”

लालू, “नहीं रे बुरबक! इहे त उ चाहता है. ये सही नहीं है. हमभी कल प्रेस वालों के सामने एक कविता पढ़ना चाहते हैं. नीतीश पर. और हम ई भी चाहते हैं कि तुम्हे भी पालिटिक्स में कल ही लांच कर दें. ई गुल्ली-डंडा बहुत हुआ अब ऊ करो जिससे आगे तुम्हारी रोजी-रोटी चलने वाली है, समझे.”

तेजस्वी का मन तो हुआ इस प्रपोजल के विरोध में कुछ कहे  लेकिन अपने पापा के चेहरे पर चिंता की लकीर देखकर चुप रहा और हामी भर दी.

लालू को थोड़ा साहस मिला बोले, “तो बेटवा ले आओ कागज कलम और लिख त दो एक चिकोटी काटने वाली कविता.”

“कविता, नहीं-नहीं पापा ये मुझसे नहीं होगा….मैंने तो दसवीं में भी कविता नहीं पढी थी.”

कविता लिखने के नाम पर बेटे को इस तरह से हलकान होते हुए देख लालू ने कहा, “अरे ई का कह रहे हो…. नहीं कैसे होगा. अभी तक नहीं पढ़े तो क्या…अब लिख दो.”

“लेकिन कैसे पापा?” तेजस्वी ने विस्मित भाव में पूछा.

“वैसे ही जैसे हमने पहली बार सत्ता मिलते ही पंद्रह साल इहां राज किया. हमने भी तो इ सब पहले बार में ही किया था. कोई ट्रेनिग थोड़े न लिए थे.” लालू ने जवाब दिया.

पापा का यह जवाब सुनकर बेटे में थोड़ा विश्वास आया लेकिन अभी भी कुछ कसर थी सो उसने कहा, “आप कॉलेज से ही राजनीति कर रहे थे और आपको इन सब का अनुभव था.”

“अरे बाकल, अनुभव गया तेल लेने. ठीक है हमें छोड़ो…अपनी घरेलू माई से सीखो. उसको कउन सा अनुभव था. संकट पड़ी तो ऊ जम गई ना गद्दी पर. और आठ साल तक राज भी किया. अब तुमही को ई गद्दी संभालनी है. एक कविता लिखने से इतना घबराओगे तो लंबा-लंबा भाषण कइसे दोगे?”

अपने पापा और मम्मी की दिलेरी की कहानी सुनकर तेजस्वी के अंदर आत्मविश्वास कुलांचे मारने लगा और वो कलम-कागज लाने के लिए तेजी से अपने कमरे की तरफ भागा.

बेटे की इस फुर्ती को देखते हुए लालू जी की तोंद में हल्की कंपन हुई.

तभी उनकी नजर सामने से चाय की प्याली लिए आती राबड़ी पर पड़ी. उन्होंने दूर से ही आवाज लगा दिया, “सुनती हो….हमारा परिवार बिहार का पहला ऐसा परिवार होगा जिसमें बाप, महतारी और बेटा तीनों सीएम होगा. कल हम अपने बेटे को राजनीति के मैदान में लांच कर देंगे, क्रिकेट के मैदान पर बहुत खेला.”

यह सब सुनकर राबडी देवी को कोई एक्साइटमेंट नहीं हुई. वो चुपचाप चाय का कप लालू जी के हाथ में पकड़ाकर दोबारा किचेन की तरफ कूच कर गईं.

1 टिप्पणी:

Dr.J.P.Tiwari ने कहा…

Achchha hota nati-pote ko bhi vaseeyatnama banakar naamit kr dete. kal ka kya pata janta sochne layak bhi na chhode.