एक आदमी ने एक दिन पारस पत्थर खोजने की ठान ली,
उसने अपने कमर में एक लोहे की जंजीर लटकाई....
.....और रास्ते के हर पत्थर को उससे छुआता हुआ वह धरती की एक कोने से दूसरे की तरफ बढ़ चला...!!
दिन, महीने, साल और सदियाँ बीती....
उसने जंगल, पहाड़, नदियाँ और रेगिस्तान लांघे ...
फिर भी उसकी तन्मयता में कोई कमी ना आई..
वह बारी-बारी एक पत्थर उठाता, उसे अपनी जंजीर से छुआता और फिर उसे दूसरी तरफ फेंकर आगे बढ़ जाता...
अचानक एक दिन एक व्यक्ति की नजर, उसके कमर पर पड़ी - वह चिल्लाया-
"तुम्हारी जंजीर तो सोने की हो गई है."
उसने अकस्मात् अपनी कमर की ओर देखा और हठात जमीन पर बैठ गया-
जिस पारस की खोज में उसने उम्र गुजार दि , वह कब उसके हाँथ से आकर निकल गई उसे पता ही नहीं चला...!
आपको नहीं लगता की हम अपने जीवन के साथ भी अक्सर ऐसा ही व्यवहार करते हैं..?
लेखक- जयशंकर
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